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सम्यग्दर्शनके चिह्न
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हो सकता । मृत्यु-भयको जीत लेनेपर अन्य सभी भय जीत लिये जाते हैं, इसलिये सात प्रकारके भय गिनानेकी क्या आवश्यकता है ? एक मृत्यु-भयके दूर करनेका निरूपण करना चाहिये ।
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उत्तर- - मृत्यु-भय बड़ा भय तो है परन्तु वह इतना व्यापक नहीं है कि सब भयोंको अपने अन्तर्गत कर सके । बहुत से आदमी ऐसे होते हैं जो मृत्युसे नहीं डरते किन्तु अन्य बहुतसी बातोंसे डरते हैं । कोई मोही जीव स्वयं मर जाता है परन्तु अपने किसी इष्टका मरना नहीं सह सकता । वह मृत्युसे नहीं डरता, परन्तु इष्ट-वियोगसे डरता है । कोई कोई कंजूस मांत स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु धन नहीं छोड़ सकते । कोई जीवनकी पर्वाह नहीं करता किन्तु यशकी पर्वाह I करता है । जिस विषयमें हमारी जितनी अधिक आसक्ति होगी उस विषयमें हम उतने ही अधिक भीत होंगे । मृत्युका भय ही कर्तव्य -- मार्ग में बाधक नहीं होता किन्तु यशकी आसक्ति भी कर्तव्यमें बाधक होती है । इसी प्रकार अन्य आसक्तियाँ भी कर्तव्य मार्ग में बाधक होती हैं । इसलिये कर्तव्य मार्ग में आड़े आनेवाले प्रत्येक भयका त्याग 1 होना चाहिये ।
अत्राणभय- -या आदान भय - सम्यग्दृष्टिको अशरणता या अरक्षाका और चोरादिका भी भय नहीं होता । वह तो स्वावलम्बनकी मूर्ति होता है । बहुतसे लोग इसलिये कल्याण मार्गके चलनेसे या प्रचारसे हट जाते हैं कि उनका अवलम्बन न छूट जाय । 'अगर मैं ऐसी बात कहूँगा तो अमुक सेठजी नाराज़ हो जायँगे ' अथवा ' मेरी नौकरी छूट जायगी, इसलिये मुझे ऐसी बात बोलना चाहिये या ऐसा काम करना चाहिये जिससे मुझे अमुककी सहायता मिलती रहे, मेरी.