________________
जैनधर्म-मीमांसा
प्रश्न-आत्मघात करनेवाला मनुष्य, मृत्युकी तरफ़से निर्भय है-—यह कहा जा सकता है या नहीं ?
उत्तर---ऐसी भी घटनाएं हो सकती हैं या कल्पित की जा सकती हैं, जिनमें आत्मघात भी वीरता या निर्भयता कही जा सके । जैसे, अगर कोई पुत्र पिताका घात करने लगे और पिता, यह सोचकर कि दुनियाके सामने पितृ-घातकताके बुरे नमूने न आने पावें, अपना घात कर ले तो उसे कायर नहीं कह सकते । और भी अनेक तरहके अपवाद हो सकते हैं । परन्तु इन अपवादोंको छोड़ दिया जाय तो आत्मघात, निर्भयता या वीरताका चिह्न नहीं किन्तु, कायरताका चिह्न है । मृत्युकी निर्भयता आपत्तियोंके ऊपर विजय प्राप्त करनेके लिये है जब कि आत्म-घात तो आपत्तियोंसे हारकर कायरतासे किया जाता है । कोई गोला अगर धीरेसे दीवालकी तरफ फेंका जाय तो वह दीवालको थोड़ी ही चोट पहुँचाता है परन्तु अगर वही खूब जोरसे फेंका जाय तो या तो वह दीवालको तोड़ देता है, अथवा दीवालको न तोड़ सके तो लौट करके अपने पास आता है । जितने जोरसे वह इधरसे फेंका जायगा उतने ही जोरसे वह लौटेगा । कषायरूपी गोला जब बहुत तीव्रताके साथ फेंका जाता है, और यदि वह दूसरेको नुकसान नहीं पहुँचा पाता तो लौटकर अपने ही ऊपर चोट करता है । मतलब यह कि आत्म-घात उस कमजोरीका परिणाम है जिसके कारण मनुष्य असफलताके सामने टिक नहीं पाता । इसलिये यह निर्भयताका परिणाम नहीं किन्तु कायरताका परिणाम है ।
प्रश्न-जो मृत्यु-भयका त्याग नहीं कर सकता वह निर्भय नहीं