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सम्यग्दर्शनके चिह्न
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चह चोरीका विरोध नहीं करता किन्तु चोरी, दुःखदायी कुनीति है इसालये विरोध करता है। वह सम्पत्तिके छिननेका भय न करेगा किन्तु चोरी एक पाप है इसलिये उसका विरोध करेगा। कर्तव्यके लिये तो वह सर्वस्व लुटा देगा। ___ मैं पहिले कह चुका हूँ कि सम्यग्दृष्टि कर्तव्य-तत्पर होनेके साथ जीवनको एक प्रकारका नाटक समझता है। इसलिये न तो वह इष्ट-वियोगसे डरता है न अनिष्ट-संयोगसे । इसका फल यह होता है कि जो आपत्तियाँ मनुष्यको कर्तव्यमार्गसे गिरा देती हैं या शिथिल कर देती हैं उन आपत्तियोंका सम्यग्दृष्टिको भय नहीं होता।
निर्भयताका यह अर्थ नहीं है कि रोजमर्राके व्यवहारमें उसे साधारण भय भी नहीं होता। वह अग्निसे डरकर अग्निमें अँगुली नहीं देता इससे उसे ऐहिकभयका दोष नहीं लगता । ऐहिक भयके त्यागका अर्थ यह है कि वह कर्तव्य-कार्य करनेके लिये ऐहिक विपत्तियोंसे नहीं डरता।
परलोक-भय-यह भी सम्यग्दृष्टिके कर्तव्य-मार्गमें बाधा नहीं डालता, क्योंकि उसका जविन इतना पवित्र रहता है कि उसे परलोककी चिन्ता नहीं होती। जिसका जीवन अपवित्र होता है वह परलोकके नामसे काँपता है। ऐसा न हो कि मैं परलोकमें गरीब बनें , नीच बनूँ , दुःखी बनूँ ,' इत्यादि विचार उसे चैन नहीं लेने. देते । परन्तु सम्यग्दृष्टिको इन बातोंकी चिन्ता नहीं होती। वह कर्तव्य-कर्मकी चिन्ता करता है, फलकी चिन्ता नहीं करता । ऐसा मनुष्य, स्वर्गादिकी प्राप्ति के लिये, किसी देवको खुश करनेके लिये, नैतिक पाप करके भी नरकादिसे बचनेके लिये, हिंसादि विधायक, अनावश्यक और भ्रमपूर्ण, क्रियाकांडके जालमें नहीं फँसता। ।