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जैनधर्म-मीमांसा ग्रंथ-पूजाका प्रचार हुआ। जनियोंके दोनों (श्वेताम्बर-दिगम्बर ) सम्प्रदायोंमें मूर्तिविरोधी उपसम्प्रदाय खड़ा हुआ। श्वेताम्बरोंमें स्थानकवासी सम्प्रदाय हुआ और दिगम्बरोंमें तारनपंथ । स्थानकवासी सम्प्र. दायने अच्छी उन्नति की। आज यह सम्प्रदाय जनसंख्या तथा धनबल आदिमें मूर्तिपूजक श्वेताम्बरोंके बराबर है। दिगम्बर सम्प्रदायका तारन पन्थ इतनी उन्नति न कर पाया। इस सम्प्रदायने मूर्तिको हटाकर मूर्तिके स्थानपर शास्त्र बिठलाया। एक तरहकी मूर्तिपूजा हट गई और दूसरी तरहकी मूर्तिपूजा चल पड़ी या रह गइ ।
तेरहपन्थ-बीसपन्थ-दिगम्बरोंमें और भी एक तरहसे सम्प्रदायभेद हुआ। धर्म-प्रभावना और धर्मरक्षाके लिये जिन जिन कार्योकी आवश्यकता थी वे सब कार्य वनवासी दिगम्बर साधु नहीं कर सकते थे। इसकी पूर्तिके लिये शाही ठाटबाटवाले भट्टारक गुरुओंकी उत्पत्ति हुई। जो दिगम्बर सम्प्रदाय एक लँगोटी रखनेसे भी गुरुत्त्वका नाश समझता था उसी दिगम्बर सम्प्रदायने राजसी ठाटसे रहनेवाले भट्टारकोंको भी गुरु माना। बीसपन्थ सम्प्रदायने भट्टारकोंको गुरु माना । तेरहपन्थ सम्प्रदायने नहीं माना-यही इन दोनोंका भेद है। ___ स्थानकवासी सम्प्रदायम भीखमजीने जिस तेरहपन्थकी स्थापना की थी उसमें और दिगम्बरोंके तेरहपन्थमें कोई सम्बन्ध नहीं है। भट्टारकोंके समान मूर्तिपूजक श्वेताम्बर सम्प्रदायमें भी यतियोंकी सृष्टि हुई। इस प्रकार बहुतसे गण गच्छ आदि जैन धर्ममें पैदा हुए। ___ उपर्युक्त सभी सम्प्रदाय अपनेको महावीरका पूर्ण अनुयायी मानते हैं, परन्तु एक निःपक्ष पाठक तो इनमेंसे किसीको भी महा