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जैनधर्ममीमांसा
उत्तर - आत्माके विषय में अनेक बातें कही जा सकती हैं जिनमेंसे कुछ बातें यहाँ दी जाती हैं
( क ) अनुभव सब प्रमाणोंमें श्रेष्ठ प्रमाण है। शरीरमें सुख-दुःखका अनुभव नहीं होता । मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ इत्यादि अनुभव शरीरसे अलग होता है । इसलिये आत्मा शरीरसे भिन्न है ।
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(ख) दो वस्तुओंका भेद उनके गुण-धर्मके भेदसे ही सिद्ध होता है । आजकल वैज्ञानिक लोग बानवे (९२) तत्त्व ( Elements ) मानते हैं । एक तत्त्व दूसरे रूपमें परिवर्तित नहीं हो सकता। एक तत्त्वसे दूसरे तत्त्वका भेद उसके पृथक् गुण-धर्मसे ही मालूम होता है । इस तत्त्वों में ऐसा कौन-सा तत्त्व है जिसमें चैतन्य पाया जाता हो ? अगर कोई ऐसा तत्त्व नहीं है तो आत्माको उन सबसे एक भिन्न पदार्थ मानना पड़ेगा ।
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प्रश्न – यद्यपि किसी एक तत्त्वमें चैतन्य नहीं है फिर भी अनेक तत्त्वोंके सम्मिश्रण से चैतन्य पैदा होता है जैसे कि शराबकी एक-एक वस्तु मादकता नहीं होती किन्तु उन सबके मिश्रणसे मादकता पैदा हो जाती है ।
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उत्तर - मादकता कोई नयी वस्तु नहीं है। प्रत्येक खाद्य पदार्थ में वह मादकता पाई जाती है । रोटी वगैरह में भी मादकता होती है । इसी कारण भोजनसे निद्रा, आलस्य आदि उत्पन्न होते हैं । जिन वस्तुओंसे शराब बनती है उनमें भी मादकता है । उनके मिश्रणसे वह अधिक 1 प्रकट होती है । वास्तव में यह कोई नयी जातिकी शक्ति नहीं है जो पैदा होती हो। इतना ही नहीं किन्तु मादकता कोई स्वतन्त्र शक्ति ही नहीं है । जितनी वस्तुएँ हम खाते-पीते हैं उनका रंग, रस, स्पर्श
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