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सम्यग्दर्शन का स्वरूप
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आदिका कुछ न कुछ प्रभाव हमारे शरीरपर पड़ता है । रंगके प्रभा1 वको क्या आप रंगसे जुदा गुण मानेंगे ! इसी प्रकार रसका प्रभाव क्या इससे जुदा गुण है? यदि नहीं तो खाद्य पदार्थके रंग, रस, गन्ध स्पर्श आदिका प्रभाव इन गुणोंसे जुदा नहीं है । यही प्रभाव मादकता है । जब यह थोड़ी मात्रामें होता है तब हम इसका वेदन नहीं करते । जब ज़रा अधिक होता है तत्र इसे निद्रा, तन्द्रा, आलस्य आदि शब्दोंसे कहते हैं । जब वह इससे भी अधिक होता है तब मादकता कहलाता है । इससे मालूम हुआ कि मादकता कोई गुण नहीं है, किन्तु रस, स्पर्शादि भौतिक गुणोंका शरीरके ऊपर पड़नेवाला प्रभाव है । हम दुनियामें सैकड़ों कार्य चित्र-विचित्र देखते हैं परन्तु वे सब रूप, रस, गन्ध आदि गुणोंके परिणमन मात्र हैं । किसी जगह नये गुणकी कल्पना हम तभी कर सकते हैं जब कि उसमें माने गये गुणों से वह कार्य न हो सकता हो । मादक वस्तुमें अभिमत मादकता आनेपर कोई ऐसी विशेषता पैदा नहीं होती जो उसके पूर्व गुणोंका परिणमन न कहा जा सके ।
सच बात तो यह है कि स्कन्ध [ अणुपिंड ] में कोई ऐसी शक्ति नहीं पैदा हो सकती जो अणुओं ( Atoms ) में न पाई जाती हो । उदाहरण के लिये हम एक रेलके एञ्जिनको लेते हैं । वह सैकड़ों डब्बोंको खींचनेकी शक्ति रखता है । अकेले, लोहेमें या अग्निमें या पानीमें इतनी शक्ति नहीं है, इसलिये एजिनमें यह नयी शक्ति कहलाई । अब हमें देखना चाहिये की यह नयी शक्ति क्या है ? कैसे पैदा हुई है ? क्षणुओं की अपेक्षा क्या एजिनमें नया गुण पैदा हुआ है ? विचारनेसे मालूम होता है कि नहीं । अग्निमें गरमी है, गरमीके निमित्तसे प्रत्येक