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जैनधर्म-मीमांसा
भी असफल हो जायगा । जब तक जीवन है तब तक कोई इस रंगमंच से भाग नहीं सकता । तब उसका कर्तव्य यही है कि वह कायरता न बतावे और वीरता से कर्तव्यका पालन करे । हाँ, वह योग्यता बढ़ाकर निम्न श्रेणीके खेल छोड़कर उच्च श्रेणीके खेल ले सकता है ।
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प्रश्न – यदि सम्यग्दृष्टि जीवनको नाटक समझता है उसमें लिप्त नहीं होता, जगत्को अपना कुटुम्ब समझता है, तो वह स्वदेश की पराधीनताको नष्ट कैसे करेगा ? वह अन्यायी और अत्याचारियोंके विनाशके लिये भी कैसे प्रयत्न करेगा ? क्यों कि उसके लिये तो जैसे स्वदेशी लोग वैसे विदेशी लोग। इस तरह सम्यग्दर्शन राष्ट्र या समाजके लिये बिलकुल निरर्थक है ।
उत्तर - सम्यग्दृष्टि जीव स्वदेश और परदेशकी भावनासे काम नहीं करता किन्तु अन्याय और अत्याचारके विरुद्ध खड़ा होता है। अगर विदेशी अन्यायी है तो वह हर तरह उसका विरोध करेगा । उसकी देशभक्ति अन्यायके पक्षमें खड़ी नहीं होती और न अन्यायके विरोध के लिये वह किसीसे पीछे रहता है । हाँ, उसकी एक कोशिश यह होती है कि अत्याचारीके अत्याचारको दूर करनेकी कोशिश की जाय और अत्याचारीको अनत्याचारी बनाया जाय । परन्तु जब यह कार्य सम्भव नहीं दिखलाई देता तब वह अत्याचारको दूर करनेके लिये अत्याचारीका भी विरोध करता है । जिस दिन संसार में देशभक्ति और जातिभक्तिका स्थान न्यायभक्ति ले लेगी उसी दिन संसार चैनकी नींद सो सकेगा । देशभक्ति कमजोर अवस्थामें न्यायरक्षणके काममें आती है और बलवान हो जानेपर न्याय- भक्षणके
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