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सम्यग्दर्शनका स्वरूप
प्रश्न - ज्ञान सच्चा हो करके भी मिथ्याज्ञान कहलाता है और मिथ्या होकरके भी सम्यग्ज्ञान कहलाता है, इसका क्या मतलब है ?
उत्तर - सत्य-असत्य की दृष्टिसे हम ज्ञानको चार भागों में विभक्त कर सकते हैं ( १ ) सत्यसत्य, ( २ ) असत्यसत्य, ( ३ ) सत्यासत्य, ( ४ ) असत्यासत्य ।
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सत्यसत्य — उस ज्ञानको कहते हैं जो वस्तुस्थितिकी दृष्टिसे भी सत्य है और उससे जो निष्कर्ष निकाला जाता है वह भी सत्य है । जैसे अमुक दूकानदार सत्यवादी है इसलिये उसकी दूकान I खूब चलती है । यहाँ सत्यज्ञानसे जो निष्कर्ष निकाला गया है वह सत्य अर्थात् कल्याणकारी है इसलिये यह ज्ञान सत्यसत्य कहलाया ।
असत्य सत्य - वस्तुस्थितिकी दृष्टिसे जो ज्ञान असत्य है किन्तु निष्कर्ष की दृष्टिसे सत्य है उसे असत्यसत्य कहते हैं । जैसे—' अगर तुम किसी भी विना जाने एकान्तमें पाप करना चाहते हो तो यह असम्भव है क्योंकि ईश्वर सब जगह देखता है; वह तुम्हारे पापका समुचित दंड देगा।' इस जगह वस्तुस्थिति असत्य है क्योंकि ऐसा कोई सर्वदर्शी ईश्वर ही नहीं हैं जो पापपुण्यका फल देता हो । किन्तु उसका निष्कर्ष सत्य अर्थात् कल्याणकारी है इसलिये असत्य होकर के भी यह सत्य कहलाया ।
सत्यासत्य - वस्तुस्थितिकी दृष्टिसे जो ज्ञान सत्य हैं किन्तु निष्कर्षकी दृष्टिसे असत्य है उसे सत्यासत्य कहते हैं । जैसे- ' 1 अमुक
X वचनयोगके प्रकरण में जो सत्यादि शब्दोंकी परिभाषा की जाती है वह यहाँ ग्रहण नहीं की गई है। ये परिभाषाएँ एक तरहसे नयी हैं ।