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जैनधर्म-मीमांसा
यापनीय सम्प्रदाय वर्तमानके दिगम्बर-श्वेताम्बर सम्प्रदायोंसे बुरा नहीं कहा जा सकता।
हर-एक सत्यान्वेषी मनुष्यको ‘जो मेरा वह सत्य ' इस वासनाका त्याग करके ' जो सत्य वह मेरा' यह भावना पैदा करना चाहिये । सत्य अगर लुप्त है तो उसे खोजना चाहिये । उसके बदलेमें सुलभ असत्यकी पूजा न करना चाहिये । बहुतसे भाई सुलभ असत्यमें ही सन्तुष्ट हैं इसलिये वे सत्यकी खोजके लिये प्रयत्न नहीं करना चाहते। इतना ही नहीं किन्तु अगर कोई ऐसा प्रयत्न करे तो उसे बुरा समझते हैं। इस ऐतिहासिक विवेचनसे उन्हें मालूम होगा कि सत्यकी खोजके लिये बहुत गुंजायश है, उसकी बहुत आवश्यकता है और पिछले ढाई हजार वर्षमें इसके लिये अनेकवार असफल और अपूर्ण प्रयत्न भी हुआ है। उसे पूर्ण और सफल बनाना अपना कर्तव्य है।