________________
मतभेद और उपसम्प्रदाय
२०७
तीर्थंकरकी मृत्युके बाद ही वह चल पड़ी है। मूर्ति और मूर्तिगृहका जो चैत्य और चैत्यालय नाम है वह इस बातका सूचक है कि मूर्ति चितापरका स्मारक है। ___ मूर्तिपूजाका विधान म० महावीरने नहीं किया हो इसलिये मूर्तिपूजा अनुचित नहीं कही जा सकती। कोई महात्मा अपने स्वागतकी बात नहीं कहता तो उसका स्वागत करना पाप नहीं कहा जा सकता। सच पूछो तो यह सम्प्रदायका प्रश्न ही नहीं है, किन्तु योग्यताका प्रश्न है। जिनका आत्मा विकसित है उन्हें मूर्तिपूजाकी ज़रूरत नहीं है, और जिनका आत्मा विकसित नहीं है, उन्हें मूर्तिपूजा सहारा दे सकती है। ___ अपने अपने पक्षको खींचनेके लिये दोनों सम्प्रदाय मिथ्या-युक्तिका सहारा लेते हैं। मूर्तिपूजक लोग उसे जैनधर्मके प्रारम्भसे सिद्ध करनेकी चेष्टा करते हैं और मूर्तिविरोधी लोग ' मूर्तिपूजा अरहंतकी कहीं हुई नहीं है। इसलिये अनुचित बताते हैं। मूर्तिपूजकोंको समझना चाहिये कि साधारण लोगोंको मूर्ति आवश्यक होनेसे वह उपादेय अवश्य है किन्तु इसीलिये वह जिनोक्त नहीं की जा सकती
और मूर्तिविरोधियोंको समझना चाहिये कि मर्तिपूजा जिनोक्त नहीं है इसीलिये वह अनुचित नहीं कही जा सकती। इन दोनों विचारोंपर कक्षाएँ बनाना चाहिये न कि सम्प्रदाय।। ___ मूर्तिपूजाका विरोध मुसलमानोंके आक्रमणोंका फल है। उस समय मूर्तिको हटा देनेसे धर्मायतन सुरक्षित रह सकता था और देवका अपमान नहीं होता था तथा अप्रभावनासे भी पिण्ड छूटता था। सिक्ख सम्प्रदायमें इसीलिये मूर्तिपूजाको स्थान न मिला । वहाँ