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मतभेद और उपसम्प्रदाय
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रज-वीर्यसे मनुष्य सरीखा प्राणी पैदा हो सकता है तो अचित्त बीजसे वृक्षादि क्यों नहीं पैदा हो सकते ? ऐसा नियम बनाना असम्भव है कि अचित्त वस्तु कभी सचित्त नहीं बन सकती । इस तरह बीज सचित्त सिद्ध नहीं होता । हाँ, मुनियोंको बीजभक्षण नहीं करना चाहिये इस नियमका कारण मालूम होता है । जैन मुनियोंके उदरनिर्वाहके नियम इतने अच्छे हैं कि उससे समाजको कुछ क्षति नहीं उठाना पड़ती या कमसे कम क्षति उठाना पड़ती है। बीज अन्य अनेक फलोंको पैदा करनेवाला है। एक बीजके भक्षणसे अन्य अनेक फलोंकी उत्पत्ति रुकती है, इस तरह बीज-भक्षणमें एक तरहका ' अल्पफल बहुविघात' है अर्थात् पेट तो भरता है थोड़ा और वस्तुका विघात होता है बहुत । मुनियोंको चाहिये कि वे समाजकी इस तरह हानि न करें । इस उद्देशसे बीजभक्षणका निषेध किया गया होगा। * ___ खड़े आहार लेनेकी बात कुछ महत्वपूर्ण नहीं है । हाँ दिगम्बर मुनियोंको इस प्रथाकी आवश्यकता थी। दिगम्बर मुनि पात्रमें भोजन नहीं लेते इसलिये यदि बैठ करके हाथमें भोजन लिया जाय तो उच्छिष्ट अन्न पैरों या जंघाओंपर गिरेगा इस लिये अङ्गप्रक्षालन करना पड़ेगा । इस अंगप्रक्षालनमें लोग स्नानका आनंद न लेने लगे इसलिये खड़े आहार लेनेका विधान बनाया गया । परन्तु यह कोई इतना महत्त्वपूर्ण कारण नहीं है कि द्राविड़संघकी निंदा की जाय । ___ * बीएसु णत्यि जीवो उन्भसणं णस्थि फासुगं गस्थि । सावजं ण हु मण्णइ ण गणइ गिहकप्पियं अहं ।। कच्छं खेत्तं वसहिं वाणिजं कारिऊण जीवंतो। ण्हंतो सीयलनीरे पावं पउरं स संजेदि ॥२७॥