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जैनधर्म-मीमांसा wwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmm~~~~~~~~~~ पानी बहुत ठंडा मालूम हो रहा था। तब इनके मनमें विचार आया कि शास्त्रमें तो एक साथ दो क्रियाओंके अनुभवका विरोध लिखा है और मैं तो एक ही साथ शीतलता और उष्णताका संवेदन कर रहा हूँ। इसलिये आगमका कथन अनुभव-विरुद्ध है।
गुरुने समझाया-मन बहुत तीव्र गतिवाला है, शीत और उष्णका उपयोग क्रमसे होनेपर भी तुम्हें एक साथ मालूम होता है । जीवका उपयोग एक समयमें एक ही तरफ लग सकता है । बहु बहुविध आदि पदार्थोंको ग्रहण करते समय अनेक पदार्थोंका ग्रहण तो होता है परन्तु उपयोग एक ही रहता है। इसी प्रकार शीत और उष्ण दोनोंका ग्रहण एक साथ तो हो सकेगा परन्तु उन दोनोंके दो उपयोग न हो सकेंगे। अनेकको ग्रहण करनेपर भी एक उपयोग होनेका कारण यह है कि उस समय वे अनेक पदार्थ सामान्य रूपसे एक बनकर विषय बनते हैं। जिस प्रकार सेनाके ज्ञानमें अगर एक ही उपयोग हो तो सेनाके ज्ञानमें ये घोड़े, ये हाथी ये पदाति, इस प्रकारका जुदा जुदा विशेषरूप ज्ञान नहीं होता । विशेषरूप ज्ञानके लिये अनेक उपयोगोंकी आवश्यकता है। परन्तु ये अनेक उपयोग एक साथ नहीं हो सकते । एक उपयोग एक समयमें अनेक पदार्थोंको जानेगा तो सामान्य रूपमें ही जानेगा विशेषरूपमें नहीं। इसीलिये एक ही समयमें जब शीतलता और उष्णताका ज्ञान होगा तब वह शीत और उष्ण इन विशेषताओंको छोड़कर होगा । उस समय सामान्य वेदनाका अनुभव होगा; न कि शीतता और उष्णताका । सामान्य और विशेषको ग्रहण करनेवाला ज्ञान एक साथ कभी नहीं हो सकता । सामान्य ज्ञान पहिले होता है