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देवकृत अतिशय
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बाजे बजानेवालोंके स्थान पाये जाते हैं और कहीं कहीं इतने ऊँचे बैठकर बाजा बजानेका रिवाज है । सफरमें बाजे उँटोंपर रखकर बजाये जाते थे । जहाँ मनुष्यसे अधिक उँचाई हुई कि आकाशकी उँचाईसे तुलना होने लगी। ___ अठारहवें अतिशयको दिगम्बर सम्प्रदायने कर्मक्षयजातिशय माना है परन्तु इसे देवकृत अतिशय कहना ही उपयुक्त मालूम होता है । क्योंकि घातियाकर्मके क्षय हो जानेसे शरीर अपने स्वभावको छोड़ दे यह बात सिर्फ श्रद्धागम्य है । इसलिये केवलज्ञान होनेपर भी नख, केश तो बढ़ते होंगे परन्तु भक्त लोग शीघ्र काट देते होंगे और बालोंका क्षौर कर्म अथवा लोंच कर देते होंगे। साधक अवस्थामें नियमोंका कड़ाईसे पालन करना पड़ता है परन्तु जीवन-मुक्त अक्स्थामें तो उस अपायके कारण ही नहीं रहते जिनसे बचनेके लिये उन नियमोंका पालन करना पड़ता था। इसलिये जो कार्य एक मुनिके लिये निषिद्ध है, वह एक अरहंतको वर्ण्य नहीं भी हो सकता है।
उन्नीसवें अतिशयसे मालूम होता है कि किसी परिमित संख्यामें उनके भक्त साथ बने रहते ही होंगे।
ये जो अतिशय बताये हैं उनमेंसे बहुतसे अतिशय ऐसे हैं जो कभी कभी होते थे और जो सदाके लिये मान लिये गये । म० महावीरके आने पर कभी किसी नगरमें सड़कोंपर पानी छिड़का गया तो यह अतिशय सदाके लिये मान लिया गया। इसी प्रकार चमर भादिके अतिशय हैं । एक कादाचित्क घटनाको सार्वकालिक रूप देनेका आज भी रिवाज़ है।