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देवकृत अतिशय
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छाया हो गईं; यदि हट जाते हैं तो कहते हैं आकाश और दिशाएँ नेर्मल हो गई । आज भी लोग इस प्रकारकी कल्पना किया करते हैं, फेर उस जमानेकी तो बात ही क्या कहना ! __चौथे, सातवें और नवमें अतिशयसे मालूम होता है कि उनके आनेपर भक्त लोगोंने जमीन साफ़ कराई होगी और धूल न उड़े इसके लिये पाना छिड़काया होगा। आज भी किसी नगरमान्य व्यक्तिके स्वागतमें ऐसा कार्य किया जाता है।
पाँचवें अतिशयसे मालूम होता है कि उनका व्यवहार लोगोंके साथमें इतना अच्छा था कि सब लोग संतुष्ट हो जाते थे। उनके व्यवहारमें रूक्षता और लापर्वाही नहीं थी।
आठवें अतिशयसे मालूम होता है कि कभी किसी भक्त नरेशने उनके आनेपर सड़कपर सुनहरी रंगके कमलचित्र बनवाये थे । अथवा व्याख्यान-मंडप ( समवशरण ) में स्वागत करते समय उनके पैरोंके नीचे ऐसा कपड़ा बिछवाया होगा जिसमें सुनहरी रंगके कमलचित्र बने होंगे । यह प्रथा आज भी अनेक प्रान्तोंमें पाई जाती * ह ।
जिस प्रकार राजाओंकी सवारीके आगे अनेक तरहके निशान चलते हैं मालूम होता है कि भक्त लोग म० महावीरके विहारके समय चक्र और अष्ट मंगल-द्रव्य ( छत्र, चमर, दर्पण, भंगार, मंजीरा, कलश, ध्वजा, सुप्रीतिका ) लेकर चलते थे।
चौदहवें अतिशयसे मालूम होता है कि जिस नगरमें म० महा___ * मेरे प्रान्तमें इसे 'पावडे डालना' कहते हैं। बारातका स्वागत करते समय बीचमें एक लम्बा कपड़ा बिछाया जाता है जिसपरसे निकलकर भेंट की जाती है।