________________
देवकृत अतिशय
१७१
प्राकृत भाषापर जोर दिया गया था। फिर भी बहुत से लोगोंको म० महावीरकी भाषा में संदेह रह जाता होगा इसलिये दुभाषिया लोग उनके वक्तव्यका अनुवाद करते जाते होंगे । अथवा कभी एकाधवार बहुत भीड़ होने पर तथा अनेक प्रान्तोंके लोग एकत्रित होनेपर दुभाषियोंसे काम लिया गया होगा । मालूम होता है . कि यह काम मागधोंसे लिया गया था । मागध शब्दका अर्थ भाट, चारण या नकीब है । इन्हीं मागधोंको पछिसे मागध देव कहने लगे किसी विशेष काम करनेवालोंको देव कहना उस जमाने में रिवाज़ था। तीसरे उद्धरणसे दुभाषियोंके सद्भावकी पुष्टि होती है । पाँचवें उद्धरण से भी यही ध्वनि निकलती है । जब तक समझमें नहीं आई तब तक अनक्षरात्मक कहलाई; जब दुभाषिया मागधोंने उसे अनेक भाषाओंमें अनुवादित कर दिया तब वह सर्वभाषात्मक कहलाने लगी । छठे मतके विषयमें मैंने अभी पूरा विचार तो नहीं किया है परन्तु अभी वह जँचता नहीं है, क्योंकि मगध और शूरसेन के बीच में अगर कोई अर्धमागध नामका देश होता तो वहाँकी भाषा अर्धमागधी कहलाती । परन्तु अर्धमागध नामका देश कहीं पढ़ने में नहीं आया ।
उपर्युक्त उद्धरणसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि म० महावीरने भाषा के रूप में कुछ ऐसा परिवर्तन किया था जिसे सत्र लोग समझ सकें तथा दुभाषियोंका भी प्रबन्ध किया गया था । ये दोनों ही प्रबन्ध ज्ञानको सर्वसाधारणकी सम्पत्ति बना देनेके लिये थे । इसीलिये यह अतिशय कहलाया । जिस युग में प्राकृत भाषा स्त्रियों तथा अपदोंकी भाषा कहलाती थी, पढ़े लिखे आदमी प्राकृत में बात कर -