________________
मूलातिशय
१७९
(३) उनका आहार इतना अल्प और नियमित था कि उन्हें शारीरिक विकारोंके कारण बीमारीका शिकार नहीं होना पड़ा।
(४) उनका शरीर बहुत दृढ़ और सहनशील था ।
(५) जहाँ उनका विहार होता था वहाँ कोई पशु आदिकी हत्या न करता था।
(६) वे उपद्रवों, कलहों और अन्यायोंको दूर करा देते थे।
(७) उनको उस समयके सभी दर्शनोंका पूर्ण ज्ञान था और उनने उचित शब्दोंमें उनकी आलोचना भी की थी।
(८) उनका व्याख्यान प्रायः ऐसे विशाल स्थानमें होता था जहाँ लोगोंको बैठनेमें तकलीफ न हो।।
(९) व्याख्यान सरल भाषामें दिया जाता था और उसका भी अनेक भाषाओं में अनुवाद कराया जाता था।
(१०) कभी कभी और कहीं कहीं लोग उनका स्वागत महाराजों-सरीखा करते थे। उनके बैठनेके स्थानको छत्र-चमर, भामण्डल आदिसे सजाते थे।
(११) जहाँ उनका विहार होता था वहाँके श्रावक खूब दान करते थे जिससे अतिवृष्टि, बीमारी आदिके कष्ट दूर हो जाते थे।
(१२) कभी कभी उनके आगमनपर ग्रामवासी लोग ज़मीन साफ कराते थे, पानी छिड़काते थे, सड़कपर कमलोंके चित्र बनाते थे, वृक्षोंको तोरणोंसे सजाते थे, बाजे बजवाते थे, पुष्प बरसाते थे। तथा और भी अनेक काम करते थे ।
(१३) कहीं कहीं उनके आगमनपर राजा लोग नागरिकोंको दर्शनोंका निमन्त्रण देते थे।