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मतभेद और उपसम्प्रदाय
निहव-जैन शास्त्रोंमें अनेक निह्नवोंका वर्णन आता है। 'निह्नव'का अर्थ किसी वस्तुका लोप करना, छुपा देना आदि है । जैन धर्मकी प्रचलित मान्यताओंमें जिन लोगोंने कुछ संदेह उपस्थित किया या दूसरा मत चलाया उन्हें निह्नव कहते हैं । तदनुसार श्वेताम्बरोंने दिगम्बरोंको निह्नव कह दिया है जब कि दिगम्बरोंने श्वेताम्बरोंको जैनाभास कहा है । जैसे छोटे छोटे मत-भेदोंपर इन्हें निह्नव कहा गया है उन्हें देखकर आश्चर्य होता है। अधिकांश प्रश्न तो बिलकुल दार्शनिक हैं और उनका धर्मपर या बाह्याचारके ऊपर भी कुछ प्रभाव नहीं पड़ता । निह्नव होनेके और भी कई कारण हैं।
जमालि-निह्नवोंमें सबसे पहिले जमालिका नाम लिया गया है। ये एक राजकुमार थे म० महावीरकी पुत्री सुदर्शनाके साथ इनका विवाह हुआ था । और जब म० महावीरने तीर्थ-रचना की तब पतिपत्नी म० महावीरके शिष्य हो गये। जमालिके पास भी पांच सौ शिष्य साधु थे और सुदर्शनाके पास एक हजार शिष्या साध्वियाँ थीं। परन्तु ऐसा मालूम होता है कि जमालि म० महावीरसे असन्तुष्टसे रहते थे और इसमें इन्हींका अपराध था । ___ म० महावीर तो निःपक्ष थे। न उन्हें कुल-जातिका विचार था न नातेदारी का । परन्तु जमालि अपनेको म० महावीरका जमाई समझकर अपनेको अपनी योग्यतासे कुछ अधिक समझते थे । और म० महावीरसे यहाँतक कह बैठते थे कि जैसे आप अन्य अनेक मुनियोंको अर्हत् या केवली कहते हो वैसे ही मुझे भी कहो । परन्तु केवली कहलानेके लिये जिस वीतरागताकी, समभावकी, गम्भी