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बारह वर्षका. तप
था । तापसोंका आचार्य म० महावीरके पिता सिद्धार्थ नरेशका मित्र था । म० महावीर गृहस्थावस्थासे ही उसे पहिचानते थे। तापसके वयोवृद्ध होनेके कारण महावीरने उसका हाथ जोड़कर विनय किया। कुलपतिने वहाँ ठहरनेके लिये आग्रह किया और वे एक रात्रि वहाँ रहे । जाते समय कुलपतिने उनसे कहा कि यह स्थान बिलकुल एकान्त है; इसलिये चौमासा व्यतीत करनेके लिये आप यहीं आजाओ तो बहुत अच्छा हो । म० महावीरने यह बात स्वीकार की। ___ वर्षाऋतु प्रारम्भ होनेके पहले ही म० महावीर आश्रममें आ गये। कुलपति महावीरको भतीजेके समान समझता था। उसने वर्षा-कालमें रहनेके लिये एक घासकी झोपड़ी बनवा दी थी । वे उसमें ठहरे । उस समय वर्षा न होनेसे नवीन घास पैदा न हुआ था, इसलिये ग्रामकी गायें झोपड़ोंकी घास खाने लगीं । तापसोंने तो गायोंको डंडे मारकर भगा दिया, परन्तु महावीरने कुछ भी न किया और गायोंने उनका झोपड़ा चर लिया । तापस लोग मन-ही-मन विचारने लगे-" हम लोग तो अपनी झोपड़ियोंकी रक्षा करते हैं किन्तु यह मुनि तो अपनी झोपड़ीकी जरा भी पर्वाह नहीं करता ! यह कैसा परोपकारी है ! क्या करें, यह कुलपतिका प्यारा है इसलिये डरके मारे हम कठोर वचन भी नहीं कह सकते । ” अन्तमें जाकर उन्होंने कुलपतिसे शिकायत की और महावीरको अकृतज्ञ, भोंदू, आलसी आदि कहा । यह भी कहा कि-" अगर वह मुनि होनेके कारण अपने झोपड़ीकी रक्षा नहीं करता तो क्या हम लोग मुनि नहीं हैं ? " कुलपतिने देखा कि शिष्योंका कहना है तो सत्य, इसलिये उसने आकर प्रेमपूर्वक म० महावीरको उलहना दिया