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बारह वर्षका तय
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(२) म० महावीरकी भविष्यज्ञताने उन्हें निमित्तवादी बना दिया। ( ३ ) म० महावीर से उनने आचार - शास्त्र और मन्त्र - शास्त्रकी शिक्षा पाई थी ।
( ४ ) म० महावीरकी उदासीनता गोशालकको पसन्द नहीं थी । (५) पीछेसे उनमें मत-भेद हो गया और गोशालकने आजविक सम्प्रदायकी नींव डाली जो अपने बाह्यरूपमें जैनधर्मसे मिलता-जुलता था । म० महावीरने अपने धर्मका प्रचार उससे भी छः वर्ष बाद किया ।
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एक बार गोशालकको म० पार्श्वनाथकी परम्पराके कुछ मुनि मिले । उनके सामने गोशालकने महावीरकी प्रशंसा की और उन मुनियोंकी निन्दा की । उन मुनियोंने कहा – तेरा गुरु भी तेरे ही समान होगा, क्यों कि वह अपने ही आप गुरु बना हुआ मालूम होता है मुनियोंके इस वक्तव्यसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उन लोगोंको यह नहीं मालूम था कि कोई तीर्थङ्कर पैदा होनेवाला है । म० महावीरका उन्होंने नाम भी नहीं सुना था । यदि गर्भ - जन्मके कल्याणकों का वर्णन सत्य होता और उस समय जैनधर्म प्रचलित होता तो क्या जैन मुनि भी जैन तीर्थंकर के विषयमें कुछ न जानते ? क्या म० महावीर इतने अपरिचित रह सकते थे ?
म० महावीर और गोशालककी प्रकृतिमें एक बड़ा भारी भेद था । म० महावीर किसीसे कुछ बात कहनेके पहले अवसर देखते थे । परन्तु गोशालक, परिणामकी पर्वाह किये बिना, जो मनमें आता था सो कह डालते थे । बुराईकी बुराई करनेमें कभी कभी गोशालक मात्रा अधिक काम कर जाते थे । यही कारण है कि कभी कभी गोशालक दूसरे देवोंकी मूर्तिका अपमान कर जाते थे, इसलिये जन