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जनधर्म-मीम सा
कहना सत्य निकलता था । इसलिये गोशालकने यह सिद्धान्त निश्चित कर लिया कि जो कुछ होना है वह तो होता ही है, मनुष्यका किया कुछ नहीं हो सकता और वे घोर दैववादी बन गये । जब उन्होंने आजीवक सम्प्रदायकी स्थापनाकी तब उनका यह विचार आजीवक सम्प्रदायका मुख्य सिद्धान्त बन गया ।
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म० महावीरकी सूक्ष्म निरीक्षण - शक्तिने उन्हें भविष्यवेत्ता बना दिया था । इसका एक उदाहरण देखिये |
एक बार कुछ ग्वाले मिट्टीकी हंडीमें खीर पका रहे थे । गोशालकने महावीर से कहा — चलिये, हम इस खीरका भोजन करें । म० महावीर ने देखा कि बनानेवाले मूर्ख हैं, उन्होंने हंडी में इतने अधिक चावल डाल दिये हैं कि पकनेपर वे हंडीमें न बनेंगे । जब वे बाहर निकलेंगे तो जरूर ये ग्वाले उसका मुँह बन्द करेंगे, इसलिये मिट्टीकी हंडी फूट जायगी । यह सोचकर उन्होंने गोशालकसे कहा कि वहाँ क्यों जाते हो, वह खीर बनेगी ही नहीं । गोशालकने जाकर ग्वालोंसे कहा कि तुम्हारी हंडी फूट जायगी और खीर न पकेगी। ग्वालोंने भयसे हंडीको चारों तरफ़से बाँध दिया परन्तु वह हंडी फूट गई । ऐसी ऐसी घटनाओं ने गोशालकको घोर दैववादी बना दिया ।
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गोशालक के विषय में जैनशास्त्रोंमें बहुत अधिक लिखा है, परन्तु वह बुरी तरह पल्लवित किया गया है । अनेक जगह निन्दा करनेके लिये बहुत अतिशयोक्ति से काम लिया गया है । परन्तु उसमें सार इतना ही है कि
( १ ) कैवल्य प्राप्त होनेके पहले ही म० महावीरको गोशालकने गुरु बना लिया था ।