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बारह वर्षका तप
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वैश्यके घरपर था। उसने उनके फीके मुखसे अनुमान किया कि इन्हें कोई न कोई घोर वेदना होना चाहिये । उसने शरीरकी जाँच की और कानमें दो लकड़ियाँ देखीं । दोनों इसका उपाय करनेके लिये विचार करने लगे । इतनेमें महात्मा वहाँसे चल दिये और एक बागमें ठहरे । वे दोनों वहाँ भी पहुँचे । वैद्यने म० महावीरको तेलकी कुंडीमें बिठलाया और पगचम्पी करनेवाले मनुष्यसे खूब चम्पी करवाई जिससे शरीर कुछ शिथिल हो जाय । ( यह सब उस चिकित्साका एक अंग था।) पीछे एक साथ वे लकड़ियाँ खींचीं । लकड़ियाँ माँसमें चुभ गई थीं, इसलिये उनको निकालते समय इतनी अधिक वेदना हुई कि म० महावीर सरीखे दृढ-हृदय मनुष्यके मुखसे भी चीख निकल पड़ी।
एक बार म० महावीर सुसुमार नगरमें ध्यानस्थ थे। उस समय एक असुर राजा ( उस समय आर्य लोग आर्येतर लोगोंको असुर आदि कहा करते थे। ) किसी देव राजा ( आर्य राजा) से युद्ध करनेके लिये जा रहा था। उस समय आर्य-सभ्यताने अनार्य सभ्यतापर पूर्ण प्रभाव डाल दिया था। अनार्य लोगोंपर आर्य मुनियोंका बहुत प्रभाव पड़ गया था, इसलिये शुभ शकुनके रूपमें उसने म० महावीरकी वन्दना की । परन्तुं लड़ाईमें वह हारकर भागा । आर्य नरेशने उसका पीछा किया । जब उसे कोई उपाय न सूझा तो वह भागता भागता म० महावीरके शरणमें आ गया और रक्षाके लिये प्रार्थना करने लगा। इतनेमें वह आर्य राजा भी वहीं आ पहुँचा । एक अनार्य नरेशको आर्य मुनिकी शरणमें आया देखकर आर्य नरेशको बहुत प्रसन्नता हुई। उसने इसको आर्यताकी विजय समझकर