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चतुर्विध संघ
अपमान मालूम होता है। धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में स्त्रियोंकी आवाज़ ही नहीं है । कुछ वर्ष पहिले तो सुधारक- सभाएँ भी स्त्रियोंकी आवाज़से शून्य रहतीं थीं । खैर, स्त्रियोंको हमने कितना कुचला है - यह तो एक लम्बा पुराण हैं परन्तु म० महावीरने स्त्रियों को स्वतन्त्र कर दिया था । इसलिये वे साध्वी संघ स्थापित करके ही सन्तुष्ट न हुए किन्तु श्राविकाओंका संघ भी बनाया । और उसकी प्रमुखाएँ भी रेवती और सुलसा सरीखीं श्राविकाएँ ही रहीं ।
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संघ - रचना तो किसी तरह की जा सकती है परन्तु उसके ऊपर देख-रेख रखना मुश्किल होता है । मं० महावीर चारों संघों के ऊपर अपनी दृष्टि रखते थे। उनकी गिनतीका हिसाब तक रक्खा जाता था । साथ ही इस बातपर भी दृष्टि रक्खी जाती थी कि कोई किसी पर अत्याचार आदि न कर पावे । अत्याचार के विरोधके लिये म० महावीर स्वयं सन्नद्ध रहते थे ।
जब रानी मृगावती के ऊपर चण्डप्रद्योतने आक्रमण किया और उसके साथ जबर्दस्ती शादी करना चाही तो रानीने तो किसी तरह आत्म-रक्षा की ही । किन्तु दोनोंके झगड़ेको सदाके लिये दूर करनेके लिये, दोनोंको निर्वैर बनानेके लिये और अत्याचार रोकनेके लिए म० महावीर स्वयं कोशाम्बी पधारे और उन्होंने दोनोंके झगड़े को शान्त कर दिया । इतना ही नहीं किन्तु एक बार श्रेणिक राजा जब अपनी पत्नी चेलनादेवीपर क्रुद्ध हो गया तब म० महावीरने श्रेणिकको अपराधी बताया और श्रेणिकने पश्चात्ताप किया । मतलब यह कि म० महावीरने श्रावक और श्राविका संघ कायम करके उनमें ऐसी सुव्यवस्था रक्खी