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जैनधर्ममीमांसा
का सूर्य तो उसकी एक किरणके बराबर है । सूर्यमें हज़ार किरणें मानी जाती हैं इसलिये वह हज़ार सूर्यके बराबर हुआ । इन सब अतिशयोक्तियोंका दूर करके सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि किसी भक्त नरेशने एक चमकदार प्रभामण्डल म० महावीरके बैठने के आसनमें इस प्रकार लगवाया होगा जिससे वह उनके सिरके चारों तरफ दिखाई देता होगा, जैसा कि आजकल भी मन्दिरोंमें मूर्तियोंके पीछे लगाया जाता है ।
सिर में से जो स्वभावतः किरणें निकलती हैं उन्हें श्वेताम्बरोंने एक अतिशय माना और दिगम्बरोंने उसे नहीं माना क्योंकि वे किरणें आँखोंसे नहीं दीखतीं ।
देवकृत अतिशय
देवकृतातिशयका अर्थ है भक्तोंके द्वारा किये गये अतिशय । इस विषय में भी दोनों सम्प्रदायोंमें मतभेद है ।
दिगम्बर मान्यता
श्वेताम्बर मान्यता
१ - सर्वार्धमागधी भाषा ।
१ - चौबीस चमर ।
२ - पारस्परिक मित्रता ।
२ - पादपीठसहित सिंहासन ।
३ – सब ऋतुओंके फलफूल उत्पन्न हों । ३ - सब ऋतुएँ अनुकूल रहें ।
४ - दर्पणसदृश भूमि ।
४ - तीन छत्र ।
५ - सब लोग प्रसन्न ( संतुष्ट ) हों ।
६ - वायु अनुकूल बहे ।
५ - रत्नमय धर्मध्वज |
६ – एक वायु हो ।
७ - गन्धोदककी वृष्टि |
७ - सुगंधित जलवृष्टि ।
८ - चरणोंके नीचे कमल रचना । ८- सुवर्ण कमल ऊपर चलें ।
योजनतक अनुकूल