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जैनधर्म-मीमांसा wormmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm समवशरणके रूपमें परिणत हो गया था तो क्या यह सब मौर्य-पुत्र नहीं देख सकते थे ? क्या ये सब देवगतिके अस्तित्वके प्रबल प्रमाण नहीं थे ? अकेले मौर्यपुत्र ही क्या, सभी गणधरोंके संदेह परलोकसे सम्बन्ध रखते हैं । निष्पक्ष विद्वानोंके लिए परलोकके स्वरूपकी समस्या जैसी आज जटिल है वैसी उस समय भी थी । यदि उस समय देव आते होते तो अनात्मवादका नाम भी सुनाई न देता । देवगति तो परलोककी जीती-जागती मूर्ति है। परंतु इतिहासके आदिकालसे अभीतक परलोक न माननेवाले, आत्मा न माननेवाले, दर्शन प्रचलित रहे हैं । स्वयं म० बुद्धने परलोकके विषयमें एक प्रकारसे मौन रक्खा था । सभी आस्तिक शास्त्रोंमें परलोक सिद्ध करनेके लिए एडीसे चोटी तक पसीना बहाया गया है । अगर देवता इस तरह आते होते तो इतना परिश्रम क्यों करना पड़ता? क्या यह सम्भव था कि लाखों देवता किसीके पास आवें फिर भी परलोकके सुखके लिए लोग दूसरे धर्मोका सहारा लेनेका साहस करें ? सभी धर्मोके शास्त्रोंमें देवोंका जैसा वर्णन आता हैं, यदि उसका शतांश भी सत्य होता तो धार्मिक वाद-विवादोंका कभीका अन्त हो गया होता; पुण्य पापकी समस्या हल हो गई होती। अब हम देखते हैं कि हर-एक युगमें बड़े बड़े विद्वानोंके सामने भी परलोककी समस्या खड़ी रही है तब यह कैसे कहा जा सकता है कि. किसी युगमें परलोकके प्राणी, देव लोग, यहाँ आते थे ? वे हमारे. महात्माओंकी पूजा करते थे तथा अन्य मनुष्योंसे मिलते-जुलते थे. शास्त्रोंके वर्णनोंको अगर कोई जरा भी ध्यानसे पढ़ेगा तो उसे मालूम हो जायगा कि हर-एक सम्प्रदायमें देवताओंसे सम्बन्ध रखनेवाला सारा वर्णन भाक्तिकल्प्य है, अथवा किसी विशेष प्रकारके