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जैनधर्मीमांसा
चतुर्विध संघ म. महावीर की संघव्यवस्था एक अद्भुत वस्तु है । उनने प्रारम्भसे ही चार संघ बनाये थे-मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। चारों संघोंका स्वतन्त्र और दृढ़ संगठन था और उनके नेता भी जुदे जुदे थे । इस संघ व्यवस्थाने ही आज जनधर्मको भारतमें जीता रक्खा है। वैदिक धर्मोके झपाटेमें बौद्धधर्म आ गया और जैनधर्म बच गया । इसका मुख्य श्रेय चतुर्विध संघ-व्यवस्थाको है । इस विषयमें हम देखते हैं कि महात्मा महावीरने प्रारम्भसे ही स्त्री और पुरुषोंकी समान कदर की है । उस जमानेमें त्रियोंको शास्त्र पढ़नेका भी अधिकार नहीं था। ऐसे समयमें म०. महावीरने महिलाओंको सिर्फ शास्त्र पढ़नेका ही अधिकार नहीं दिया, किन्तु पुरुषोंके समान त्रियों को उनने पूर्ण अधिकार-मोक्ष जाने तकका अधिकारदिया। उनका संघ स्थापित किया जिसका प्रमुखपद एक महिला (चन्दना) को दिया। यही कारण है कि जैनधर्ममें स्त्री-पुरुषोंके सब जगह समान हक हैं। इस समानताका असर राजधर्ममें भी इतना पड़ा है कि जैनधर्मके अनुसार पुरुषकी सम्पत्तिका उत्तराधिकार उसकी पत्नीको दिया गया है न कि पुत्रको । स्त्री-पुरुषोंकी इस तरह समानताका प्रतिपादन करना म० महावीर सरीखे समदृष्टिके ही योग्य है। ___ श्रावक और श्राविका संघकी रचना करके उनने स्त्री-पुरुषकी समानताका समर्थन तो किया ही, साथ ही श्राक्कों और मुनियोंको भी परस्पर सहायक बना दिया। श्रावकोंकी मुनियोंके उपर देखरेख रहनसे तथा उनका संघमें पर्याप्त स्थान होनेसे मुनि लोग स्वच्छन्द