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कैवल्य और धर्मप्रचार
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होते देखते हैं तो, यह जानते हुए भी कि क्रोध क्षमासे वश किया जाता है, उससे पूछते हैं कि भाई ! तुम क्रोधको किस तरह वश कर लेते हो ? यह प्रश्न न तो असंगत है, न पूछनेवालेकी मूर्खताका द्योतक है। अगर कोई किसी महात्मासे पूछे कि 'आप इतने बड़े आदमी कैसे बन गये' तो वे उत्तर देंगे कि त्याग और सेवासे; इस बातको एक विद्यार्थी भी जानता है, फिर भी उस महात्मा के सामने बड़े बड़े विद्वानोंके द्वारा भी यह प्रश्न पूछने लायक ही रहेगा । क्योंकि इस प्रश्नोत्तरके अन्तस्तल में विद्यार्थी - सरीखी तोतारटौनी नहीं है किन्तु पूछनेवाले और उत्तर देनेवालेके जीवनभरका अनुभव है । जब केशीजीने गौतम स्वामीसे पूछा कि 'सभी लोग बन्धनोंमें फँसे हुए हैं आप कैसे छूट आये' तब गौतम स्वामीने उत्तर दिया कि 'रागद्वेषको नष्ट करके ' । इस प्रश्नोत्तर में कोई जान नहीं मालूम होती — विद्यार्थी भी इसका यही उत्तर देगा । परन्तु पूछनेवालेके शब्दों के भीतर पार्श्वापत्योंकी सारी कमजोरियोंका रेखाचित्र है और उत्तरदाता के शब्दोंमें उन कमजोरियोंको दूर करनेके या न आने देनेके जो उपाय म० महावीरने बताये हैं वे हैं । इस लिये प्रत्येक प्रश्नोत्तरके अन्तस्तलको देखकर उसके महत्त्वको समझना चाहिये । प्रश्न के बाह्यरूपसे उसके महत्त्वका माप करना ऐसा ही है जैसे किसी मनुष्यका महत्त्व उसके शरीरके मांसकी कीमत के अनुसार ठहराना ।
इन चारों बातोंपर विचार करनेसे मालूम हो जायगा कि गौतमादि विद्वानोंके संदेह या केशी- गौतम संवाद न तो असंगत है न महत्त्वशून्य है । जैनधर्मके प्रचार में और उसके रहस्य की खोज में ये बड़े कामकी चीजें हैं ।