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जैनधर्म-भीमांसा
कठिन ही नहीं दुर्लभ समझी जाती थीं । गुरुत्वाकर्षणके सिद्धान्तको आज एक मामूली विद्यार्थी भी समझता है परन्तु न्यूटन * के पहिले उसे बड़े बड़े विद्वान् भी नहीं समझते थे । इसलिए क्या यह कहा जा सकता है कि जिस बातको एक विद्यार्थी भी जानता हैं उसे कह कर न्यूटनने क्या बहादुरी की ? आजके विद्यार्थी और प्रोफेसरके इस ज्ञानका स्रोत कहाँसे आया है इस बातका जब हम विचार करेंगे तब हमें न्यूटनका महत्त्व मालूम हो जायगा । आज जैनधर्मकी जिन बातोंका ज्ञान हमें बहुत सरल मालूम होता हैं वह कुछ हमारी मौलिक उपज नहीं है—पोथियोंका ज्ञान है। परन्तु उनका स्रोत तो हमें महावीर-गौतम संवाद या गौतम केशीसम्बादमें मिलेगा । अगर हमें बाप-दादोंकी जायदादमेंसे एक लाख रुपया मिल जाय तो हम समझेंगे कि लाख रुपया प्राप्त करना क्या चीज़ है ! परन्तु हमारे जिस पूर्वपुरुषने जन्म-भर पसीना बहाकर वह धन पैदा किया था वह एक-एक पैसेका मूल्य जानता था । इसी तरह आज हम भले ही कहें कि 'परलोककी बात तो एक बच्चा भी जानता है, कर्म-शत्रुओंको कैसे जीता जा सकता हैं—यह बच्चों कैसा सवाल है । ऐसा पूछनेवालेकी विद्वत्तामें बट्टा लगता है। 'बन्धनोंसे कैसे छूटा जा सकता है-यह तो पाठशालाका विवार्थी भी जानता है आदि' । परन्तु पहिले पहिले जिस महात्माने अपने अनुभवसे इस बातका निर्णय किया वह उसके एक एक शब्द का मूल्य जानता था। उस समय वह आचार्योको भी दुर्लभ था ।
* यूरोपमें सबसे पहिले न्यूटनने इस सिद्धान्तका पता लगाया था । भारतमें चौथी शताब्दीके अन्यों में भी इस सिद्धान्तका उल्लेख मिलता है।