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बारह वर्षका तप
(अष्टाङ्ग निमित्त-विद्या) भी सीख ली। इसके बाद गोशालकने म० महावीरका साथ छोड़ दिया और आजीवक सम्प्रदायको स्थापनाका काम शुरू किया। __ जैन शास्त्रोंमें गोशालकके विषयमें जो कुछ लिखा है वह कहाँतक सत्य है कहा नहीं जा सकता, फिर भी उसमें थोड़ा बहुत सत्यका अंश अवश्य मालूम होता है। ___एक बार म० महावीर दृढ़भूमि गये । यहाँ म्लेच्छोंकी बहुत बस्ती थी । इस जगह म० महावीरने बहुत कष्ट सहे । एक दिन इतनी धूल उड़ी कि उनके कान नाक आदिके छिद्र धूलसे भर गये। एक दिन कीड़ियोंने बहुत काटा । यहाँ उन्हें मच्छरोंका भी कष्ट सहना पड़ा। अन्य अनेक प्रकारके कीड़ोंने भी बहुत तंग किया । बन्दर आदिके उपद्रवोंको भी सहा । एक बार एक आदमीने उनके सिरपर चक्र रख दिया जिससे उन्हें घुटनेके बल हो जाना पड़ा। ( शास्त्रोंमें लिखा गया कि भगवान घुटने तक पृथ्वीमें फंस गये।) यहाँपर कुछ स्त्रियोंने इन्हें अनेक प्रकारसे लुभानेकी भी चेष्टा की थी। ये उपसर्ग लगातार हुए इसलिये जैनशास्त्रोंमें इन्हें संगम-देवकृत उपसर्ग माना है । प्राकृतिक उपद्रवोंको देवकृत बता देनेका उन दिनों एक रिवाज-सा पड़ गया था। यहाँ म० महावीरको आहार भी नहीं मिलता था। एक दिन एक म्वालिनके यहाँ ही आहार मिला था।
मेढ़क गाँवमें एक म्वाला बालोंकी रस्सी लेकर मास्ने आया, परन्तु किसी मले आदमीने उसे रोककर डाँटा जिससे वह रह गया। शालोंमें इस रोकनेवालेको भी इन्द्र मान लिया गया है।