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जैनधर्म-मीमांसा
मायोग धारण करके ठहरे । रात्रिमें एक तापसी आई और ठंडे जलमें स्नान करके वृक्षपर चढ़ गई । उसकी जटाओंसे पा की बूंदें टपक टपककर म० महावीरके ऊपर पड़ने लगीं । माघकी रात्रि थी और म. महावीर नग्न थे; इसलिये ये ठंडी बूंदें गजब ढा रही थीं, परन्तु म० महावीर सब सह गये। सुबह जब वह जाने लगी तो महात्माको भीगा देखभर उसे बड़ा पश्चात्ताप हुआ, वह क्षमा माँगकर चली गई । मालूम होता है कि तापसीको किसी मंत्र-सिद्धिके लिये यह क्रिया करनी पड़ी थी। परन्तु जैन लेखकोंने उस तापसीको एक व्यन्तरी देवी बता दिया है । क्योंकि शायद ऐसे ऊटपटाँग कामके लिये देवताओंको ही फुरसत हो सकती थी। तापसीको देवी बनानेका दूसरा कारण यह भी है कि माघकी रात्रिमें ठंडे पानीसे स्नान करनेका काम भी एक व्यन्तरीके ही योग्य समझा गया। एक तापसी भी उतनी ठंड सहे जितनी म० महावीरने सही थी, यह बात भक्त-हृदयको रुचिकर नहीं हो सकती।
एक बार म० महावीर कूर्म ग्राम आये । यहाँ गोशालकका एक तापसके साथ झगड़ा हो गया । गोशालकने जब तंग किया तो उसने तेजोलेश्या ( एक तरहका मंत्र या तंत्र मालूम होता है कि जिसके कारण शरीरका पित्त कुपित हो जाता था तथा दाह होने लगता था और अंतमें मनुष्य मर जाता था ) का प्रयोग किया, परन्तु म० महावीरने उससे विरुद्ध गुणवाली शीत-लेश्यासे गोशालककी रक्षा की । गोशालकके आग्रह करने पर म० महावीरने गोशालकको लेश्या सिद्ध करनेकी विधि बतला दी । इसके बाद पार्श्वनाथकी परम्पराके कुछ मुनियोंसे गोशालकने ज्योतिष विद्या