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बारह वर्षका तप
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जो अनन्त वात्सल्यके चिह्न थे उनको उसने जरूर समझा । आज भी हम किसी पशुपर जब कुछ भाव प्रकट करना चाहते हैं तब अपनी भाषाके शब्दोंका प्रयोग करते हैं। वह पशु हमारी भाषा भले ही न समझे, परन्तु हमारी मुख-मुद्राको जरूर समझता है। उस मुख-मुद्राके बननेमें शब्दोंका बोलना बहुत सहायता पहुँचाता है। इसलिये हम पशुके साथ भी बोलते हैं । वे भी बोले और सर्पके ऊपर उनके शब्दोंका आशातीत प्रभाव पड़ा । इसके बाद उस सर्पने कभी किसीको तंग नहीं किया और निराहार रहकर 'संल्लेखना'पूर्वक मर गया। इसमें सन्देह नहीं कि निर्भयतामें महावीरसे बढ़कर महात्मा मिलना मुश्किल है। ___ एक बार म० महावीर गंगा किनारे आये और नदी पार करनेके लिये नौकामें बैठे । जब नौका बीचमें पहुँची तो बहुत हवा चली। नौकाके अन्य यात्रियोंने जीवनकी आशा छोड़ दी। परन्तु भाग्यवश नौका डूबते डूबते बच गई । थोड़ी देर बाद हवा बन्द हो गई और सब लोग सकुशल पार हो गये । जैन शास्त्रोंमें यह घटना भी देवकृत बना दी गई है।
विहार करते हुए म० महावीर राजगृही नगरीमें पहुँचे और एक कपड़े बुननेवालेके यहाँ ठहरे । इसी समय आजीवक सम्प्रदायके संस्थापक मष्करी गोशालक भी म० महावीरके पास रहे । छः वर्ष तक इन दोनोंका सम्बन्ध रहा । मैं पहले कह चुका हूँ कि म० महावीर पक्के निमित्त-ज्ञानी थे। उन्हें प्राकृतिक और कृत्रिम घटनाओंके कार्य-कारणभावका और ज्ञाप्य-ज्ञापक भावका अच्छा अनुभव था, इसलिये वे बहुत-सी बातें पहले ही बता देते थे। उनका