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बारह वर्षका तप
उसका सर्वस्व लुट जाता था तब वह चुपचाप भयङ्कर वेष बनाकर रात्रिमें लोगोंको डराने लगता था। लोग उसे यक्ष, भूत आदि मान लेते थे । इसलिये उसकी आवाज़ सुनते ही लोग भागते थे और कमजोर हृदयवाले तो घबराकर मर भी जाते थे। कभी कभी भूत बननेवाला व्यक्ति ही उसे मार डालता था। इस तरह उसका स्थायी आतंक जम जाता था। ऐसे भूतोंके लिये लोग कभी कभी पूजा भी चढ़ाते थे । यह यक्ष भी ऐसा ही सताया हुआ मनुष्य मालूम होता है । ये यक्ष-भूतवेषधारी मनुष्य--किसी न किसी रूपमें कोई ऐसी कथा प्रचलित कर देते थे जिससे ग्रामके लोग अपनेको अपराधी और वेषधारीको भूत समझने लगें । इस यक्षने भी इसी प्रकार एक बैलकी कथा प्रचलित कर दी थी। म० महावीरकी सहनशीलताका उसके ऊपर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसने अपना यक्षपन छोड़ दिया। ___यक्षोपद्रवके बाद म० को निद्रा आ गई और निद्रामें उन्होंने दश स्वप्न देखे । जब वे सोकर उठे तब मन्दिरका पुजारी इन्द्रशर्मा और एक उत्पल नामका निमित्त-ज्ञानी तथा गाँवके लोग आये । महात्माको जीवित देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य और प्रसन्नता हुई । उत्पलने उनके स्वप्नोंका फल कहा परन्तु एक स्वप्नका. फल वह न बता पाया । महात्माने कहा कि दो मालाओंका फल यह है कि मैं दो प्रकारका (गृहस्थका और मुनिका ) धर्म कहूँगा। इससे मालूम होता है कि गृहस्थ और मुनिके संघ बनानेका निश्चय उन्होंने उस समय तक कर लिया था। म० महावीर संघ-संगठनके प्रारम्भसे हिमायती रहे हैं और उन्होंने गृहस्थोंको उपेक्षाकी दृष्टि से नहीं देखा ।
दीक्षा-कालके एक वर्ष बाद महात्मा महावीर फिर मोराक ग्रामके