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बारह वर्षका तप
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हुई बातें प्रकट करा लेना तथा प्रकृतिके सूक्ष्म निरीक्षणद्वारा प्राकृतिक घटनाओंका पता लगा लेना आदि महत्त्वपूर्ण समझा जाता था । म० महावीर स्वभावसे ही इस विद्यामें अत्यन्त निपुण थे। परन्तु विशेषता यही थी कि इस विद्याका उपयोग उन्होंने कभी ऐहिक कार्यके लिये नहीं किया । जो लोग ऐहिक स्वार्थके लिये इस विद्याका या इस विद्याके नामका उपयोग करते थे उनके वे विरोधी थे। ऐसे लोगोंकी अक्ल ठिकाने लानेके लिये वे कभी कभी प्रयत्न भी करते थे जैसा कि उन्होंने इस बार मोराक ग्राममें किया।
इस ग्राममें एक अच्छन्दक नामक आदमी रहता था जो चोर और व्यभिचारी था । वह ज्योतिष विद्यासे अपनी आजीविका चलाया करता था। म० महावीरको यह बात अच्छी न लगी इसलिये उन्होंने उसकी अक्ल ठिकाने लानेका विचार किया।
ग्रामके बाहर जब वे एक बागमें स्थिर थे उस समय वहाँसे एक ग्वाला निकला । म० महावीरने ग्वालाको बुलाकर कहा-तू अपने बैलोंकी रक्षाके लिये जा रहा है और रास्तेमें तुझे एक सर्प मिला था। तूने सौवीरसहित कंगकूरका भोजन किया है। आज तू स्वप्नमें रोया है । जिसने मनुष्य-प्रकृति और मनुष्याकृतिका गहरा अभ्यास किया हो उसके लिए ऐसी बातें जानना कठिन नहीं है । ग्वाला यह सुनकर चकित हो गया। बातचीत करनेसे निमित्त-ज्ञानके लिये और भी मसाला मिल गया । तब उन्होंने और भी बातें बताईं । ग्वालाका आश्चर्य और बढ़ गया। वह शीघ्र ही गाँवमें गया और लोगोंसे बोला कि गाँवके बाहर एक त्रिकालवेत्ता महापुरुष आये हैं। उसने अपना सब हाल कहा । यह सुनकर गाँवके लोग पूजाकी सामग्री