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जैनधर्म-मीमांसा
लोगोंसे जगह माँगी । लोगोंने कहा-" यहाँ एक यक्ष रहता है; वह किसीको रहने नहीं देता। जो रहता है उसे मार डालता है। आपको रहना है तो आप अमुक जगह रह सकते हैं । परन्तु यक्षके यहाँ रहना तो किसी तरह ठीक नहीं।” परन्तु वे वहीं रहे । रात्रिमें म० महावीरको यक्षने अनेक प्रकारके कष्ट दिये । परन्तु वे न तो घबराये, न चिल्लाये, न उसपर क्रोध किया । इस बातका यक्षके ऊपर इतना असर हुआ कि वह पानी पानी हो गया और महात्मा महावीरके चरणोंपर गिरकर अपनी दुष्कृतिका पश्चात्ताप करने लगा। महात्माने उसको उपदेश दिया--" तू आत्माको पहिचान । अपने समान तू किसी प्राणीको कष्ट न दे । किये हुए पापोंकी निन्दा कर । क्योंकि किये हुए पापका फल करोड़ों गुणा मिलता है ।” म० इस ग्राममें चार मास रहे । फिर कभी इस ग्राममें यक्षका उपद्रव नहीं हुआ । जब महात्मा यहाँसे जाने लगे तब यक्षने म० महावीरसे माफी माँगी और पश्चात्ताप प्रकट किया ।
पुराने जमानेमें यक्ष आदिके नामसे लोग बहुत डरते थे । लोगोंकी इस कमजोरीका उपयोग अनेक लोग किया करते थे । कभी कभी ऐसा होता था कि किसी ग्रामके सब आदमी किसी एक व्यक्तिको बहुत तंग करते थे और जब वह सब तरहसे तंग हो जाता था या
हम म० महावीरको फिर मोराक गाँवमें देखते हैं । इसलिये काठियावाद तक जाना और भी अशक्य हो जाता है । मालूम होता है कि अस्थिक ग्रामके यक्षकी घटनाको बढ़वाणके शूलपाणि यक्षसे जोड़नेके लिए अस्थिक ग्रामका दूसरा नाम बदवाण बता दिया गया है । सम्भव हे अस्थिक ग्रामके यक्षका नाम भी इसी कारण शूलपाणि रख दिया गया हो।