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केशी-गौतम-संवाद
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निराकरणका सम्वाद था । केशिकुमार आचार्य थे, महान् श्रुतज्ञानी थे, वे कोई नवदीक्षित नहीं थे कि उन्हें धर्म, मोक्ष, मन, इंद्रिय आदिका सामान्य परिचय भी न हो। इसलिये उनके पिछले दस प्रश्नोंमें भी कोई विशेष बात होना चाहिये । सूत्रोंके विकृत हो जानेसे उस सम्वादके प्रश्नोत्तरोंका ठकि ठीक रूप नहीं मिलता, सिर्फ प्रश्नोत्तरके विषयोंपर प्रकाश पड़ता है। पार्थापत्योंको इन विषयोंका दृढ़ निश्चय न होगा या आचारकी शिथिलता होगी। म० महावीरने इन सबका निश्चयात्मक निर्णय कर दिया, इससे केशिको अवश्य सन्तुष्ट होना चाहिये । यद्यपि प्रश्नोत्तरोंका ठीक ठीक रूप नहीं मिलता फिर भी उपलब्ध सामग्रीके आधारपर कुछ विचार करना आवश्यक है।
तीसरे प्रश्नसे मालूम होता है कि म० पार्श्वनाथके धर्ममें आत्मिक विकारोंकी या भावाश्रवोंकी संख्या निश्चित नहीं हुई थी और न उनकी प्रबलता-निर्बलताका निर्णय हुआ था। 'आत्मिक विकार हजारों हैं' बस ऐसी ही सामान्य मान्यता उस समय होगी। लेकिन म० महावीरने उनकी संख्या निश्चित की-उनमें पहले मिथ्यात्वको, फिर कषायको, फिर इन्द्रियोंको जीतनेका उपदेश दिया । इस तरह एक विधायक कार्यक्रम लोगोंके सामने आया ।
चौथा प्रश्न अस्पष्ट है । सम्भवतः उससे यह मालूम होता है कि पार्थापत्योंकी निर्ग्रन्थता महावीरके निर्ग्रन्थों बराबर नहीं थी। यह भी सम्भव है कि पार्थापत्य लोग एक स्थानमें बहुत दिनोंतक रहते होंमहावीरके समान गाँवमें एक दिन और नगरमें पाँच दिन रहनेका नियम न हो—इसलिये स्थानीय मोह-ममता उनकी बढ़ गई हो । यह