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जैनधर्म-मीमांसा
इस असाधारणताको भक्त लोगोंने अलौकिक और अविश्वसनीय रूप दे दिया है । कोई कहता है कि उनको जन्मसे तीन ज्ञान थे, इन्द्रने मेरुपर ले जाकर बड़े बड़े घड़ों से स्नान कराया था, प्रतिदिन साढ़े तीन करोड़ रत्न बरसते थे, वे तीन लोकके गुरु थे इसलिये उन्हें पाठशाला में नहीं जाना पड़ा, किसीके मतसे गये भी तो इन्द्रने आकर उन्हें गुरुके आसनपर बिठलाया, उन्होंने उस समय ऐन्द्र व्याकरण बनाया । ये सब घटनाएँ भक्तिकल्प्य हैं, इसलिये इनपर विशेष विचार नहीं किया जाता । हाँ, कुछ घटनाएँ ऐसी हैं जिनको अगर वास्तविक रूप में देखा जाय तो वे म० महावीरकी महत्ताकी सूचक हैं और सम्भव भी मालूम होती हैं ।
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एक बार बालक महावीर अन्य बालकोंके साथ खेल रहे थे । वृक्ष - पर कौन कितना ऊँचा चढ़ सकता है, यह खेलका विषय था । जब महावीर वृक्षके ऊपर चढ़े थे उसी समय वहाँ एक सर्प आ गया और वृक्षके पास रुक रहा । सब लड़के उसे देखकर भागने लगे परन्तु महावीरने उसकी पूँछ पकड़कर रस्सीकी तरह उसे घुमाकर दूर फेंक दिया। इससे उनकी निर्भयता मालूम होती है । परन्तु भक्त हृदयको इतने महत्त्वसे सन्तोष नहीं हो सकता, इसलिये उसने यह कल्पना की कि वह सर्प नहीं था किन्तु देव था जो कि इन्द्रके मुखसे महावीरकी प्रशंसा सुनकर उनकी परीक्षा लेने आया था । भक्तों का यह भोलापन विश्वासके योग्य नहीं, विनोदके योग्य है । महावीर - जीवनकी ऐसी बहुत-सी घटनाएँ दैवी बना दी गई हैं। मज़ा यह है कि इन्द्र महोदय बराबरं भगवान्की प्रशंसा करते थे और फलस्वरूप महावीरपर एक न एक आपत्ति टूट पड़ती थी, परन्तु