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केशी- गौतम संवाद
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विदेहों में भी अरहंत चातुर्यामका निरूपण करते हैं वह यह सम्पूर्ण हिंसासे विरक्ति.... आदि । "
मैथुनका परिग्रहमें अन्तर्भाव होता है क्योंकि अपरिगृहीत योषितका भोग नहीं किया जाता । "
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एक प्रश्न यह भी उठाया जाता है कि " चार व्रतके पांच रूप वर्णन करनेमें सामान्य और विशेषका विशेष अन्तर नहीं है । यह तो तभी बैठता है जब कि एक समय चारित्रका उपदेश सामायिकरूप माना जाता है और दूसरे समय छेदोपस्थापनारूप ।
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प्रश्नकर्ताने यहां मनोवैज्ञानिक दृष्टिसे विचार नहीं किया। वास्तवमें सामायिक और छेदोपस्थापनामें सामान्य विशेणात्मक होनेसे अविरोध ही है । क्योंकि सामायिकमें भेद किये विना वर्णन है और 1 छेदोपस्थापना में भेद करके । सामान्य और विशेषमें विरोध नहीं माना जाता । परन्तु जब विशेष और विशेषमें भेद होता है तो वह लोगोंको खटकता है । जैसे कोई गुणस्थानका सामान्य विवेचन करे और कोई चौदह भेदोंमें विवेचन करे, तो इसमें लोगों को एतराज कम
१ – भरहेरावसु णं वासेसु पुरिमपच्छिमवजा मज्झिमगा बावीस अरिहंता भगवंता चाउजामं धम्मं पण्णवेंति । तं जहा - सव्वातो पाणाइवाआओ वेरमणं, एवं मुसावाआओ वेरमणं, सव्वातो अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वातो
दादाणा (परिग्गहा ) ओ वेरमणं सव्वेसु णं महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउजामं धम्मं पण्णवंति, तं - सव्वातो पाणातिवायाओ वेरमणं जाव सव्वातो बहिद्धादाणाओ वेरमणं । सू. २६६ ।
२ - आदीयते इति आदानं परिग्राह्यं वस्तु तच्च धर्मोपकरणमपि भवति इत्यत आह-बहिस्तात् धर्मोपकरणात् बहिर्यदिति, इह च मैथुनं परिग्रहेऽन्तर्भवति न परिगृहीता योषित् भुज्यते ।-टीका २६६ ।