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जैनधर्म-मीमांसा
जा सके कि काल-क्रमसे निकट के तीर्थंकरको छोड़कर उपकको अनंतनाथकी दुहाई देना पड़े ।
आज अगर कोई जैन किसी जैन तीर्थंकर के नामकी दुहाई देता है तो वह म० महावीरका नाम लेता है न कि अन्य तर्थिंकरका । अन्य प्राचीन तीर्थंकरका नाम तभी लिया करता है जब कि कोई बात ऐसी कहना हो जो म० महावीरके जीवनमें न पाई जाती हो । यहाँपर 1 महात्मा बुद्धदेवके मुँह से अपने विषयमें जो उद्गार निकले हैं वे ऐसे नहीं हैं जो अनन्तनाथ के पीछेके तीर्थंकर में न कहे जा सकते हों, तब उपकने अनन्तनाथका नाम लिया यह कैसे कहा जा सकता है ? इससे मालूम होता है कि ' अनन्त जिन शब्द किसी व्यक्तिका नहीं किन्तु पदका निर्देश करता है । इसका अर्थ है -- अनन्त शत्रुओंको जीतनेवाला * अनन्तकालतक स्थिर रहनेवाला, अपरिमित महत्तावाला । आत्माके विकारोंको जीतनेवालेको जिन कहते हैं । जिसने अनन्त या सब विकारोंको जीत लिया वह अनन्त जिन कहलाता है । यद्यपि ' अनन्त ' और ' सर्व ' शब्द के अर्थमें अन्तर है फिर भी दोनों कहीं कहीं पर्यायवाची शब्द बन जाते हैं । जैसे
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* - वह पाली पाठ निम्नलिखित है- " यथा खो, त्वं आवुसो परिजानासि अरहसि अनन्त जिनोति ” एक यूरोपियन विद्वानने इसका प्रामाणिक अनुवाद इस प्रकार किया है-.
“Which is, as much as to say, brother, that you profess to be a saint-an immeasurable conqueror." - Buddhism in Translation' by Warren Page 343. इससे भी मालूम होता है कि अनन्त जिन शब्द एक विशेषण है ।