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महात्मा महावीर
साधारण राजकुमार थे । ब्यालीस वर्षके उनके त्याग और तपने उन्हें एक महान् तीर्थंकर बना दिया। उनका महत्त्व त्याग और तपमें है, बाहिरी वैभवमें नहीं। ___ जैनधर्भके अनुसार किसी मनुष्यके बाह्य वैभवोंसे उसका महत्त्व नहीं मालूम होता । किसी मनुष्यकी देवता, इन्द्र, राजा आदि पूजा करें; वह सुन्दर हो, शरीरसे बलवान् हो, इत्यादि चिह्न उसके महत्त्वके चिह्न नहीं हैं, क्योंकि इनके विना भी कोई महात्मा हो सकता है और इनके रहने पर भी किसीमें महात्मापनका एक अंश भी न हो, यह भी हो सकता है । इसलिये बाह्यातिशयरूप भक्त-कल्प्य घटनाओंको महत्त्व देनेकी हमें ज़रूरत नहीं है । आचार्य समन्तभद्रने इस विषयमें बहुत ही अच्छा कहा है___“ देवताओंका आगमन, आकाशमें चलना आदि विभूतियाँ मायावियोंमें भी देखी जाती हैं, इसलिये आप हमारे लिये महान् नहीं हो सकता । यदि कहा जाय कि आपके शरीरमेंसे पसीना नहीं निकलता तथा सुगंधित जलकी वृष्टि होती है, ये अतिशय दूसरोंमें नहीं पाये जाते तो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि ये बातें भी देव जातिके प्राणियोंमें पाई जाती हैं जो राग, द्वेष आदि विकारोंसे मलिन हैं।"
१-देवागमनभोयानचामरादिविभूतयः ।
मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान् ॥ १ ॥ अध्यात्म बहिरप्येष विग्रहादिमहोदयः । दिव्यः सत्यो दिवौकसस्वप्यस्ति रागादिमत्सु सः ॥ २ ॥
-आप्तमीमांसा।