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महात्मा महावीर
विषयमें चुप है । यहाँ यह बात कह देना आवश्यक है कि दिगम्बर सम्प्रदायके ग्रंथों में म० महावीरका चरित इतना संक्षिप्त है कि मानो दिगम्बरोंको महावीरके व्यक्तित्वसे विशेष मतलब ही न रहा हो । श्वेताम्बर ग्रंथों में इस विषयका विस्तृत विवरण है । इसलिये महावीरका जीवन-चरित लिखने में श्वेताम्बर साहित्यसे विशेष सामग्री मिलती है । इसका कारण संभवतः यह भी हो सकता है कि प्राचीन सूत्र-ग्रंथ विकृत हो जानेसे जब दिगम्बरोंने अमान्य ठहरा दिये तब उसमेंकी बहुत-सी सामग्री इनके पास न रही और इस विषय में साधारण सामग्रीसे ही इन्होंने संतोष माना । ' विशेष घटनाओंपर उपेक्षा करनेपर भी जैनधर्मको समझने में कुछ भी कठिनाई नहीं है संभवतः यह समझकर विशेष विवरण उनने छोड़ दिया । यहाँ मैं दोनों सम्प्रदायोंकी घटनाओंको मान लूँगा और उनमेंसे युक्तिशून्य, असंभवनीय आदि घटनाओंका त्याग कर दूँगा । जो घटना साम्प्रदायिक बुद्धिसे कल्पित मालूम होगी वह छोड़ दी जायगी या उसका विरोध किया जायगा ।
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'म० महावीरके बड़े भाई नन्दिवर्धन थे' इस मान्यतासे न तो दिगम्बर सम्प्रदाय के किसी खास सिद्धान्तका विरोध होता है, न श्वेताम्बर सम्प्रदाय के किसी खास सिद्धान्तका समर्थन, इसलिये इस बातको माननेमें कुछ आपत्ति नहीं है । परन्तु म० महावीरका ८२ दिन तक देवानन्दा के गर्भ में रहना, बाद में इन्द्रद्वारा गर्भापहरण होना, यह बात नहीं मानी जा सकती । यहाँ प्रश्न यह होता है कि इस घटना से
ताम्रत्वकी पुष्टि नहीं होती, न दिगम्बरत्वका खण्डन, तब क्या कारण है कि श्वेताम्बर साहित्यमें इस घटनाको स्थान मिला ? यह
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