________________
जैनधर्म-मीमांसा
___ इसी प्रकार नभोयान शब्दका अर्थ भी इस तरहसे ' चलना' लेना चाहिये जिससे हिंसा न हो। - आचार्य विद्यानन्द इस बातको माननेके लिये तैयार नहीं हैं कि जैन-तीर्थंकरका देवागम नभोयान जैसा है वैसा दूसरोंका नहीं है। ये विभूतियाँ वे इनमें और उनमें एक सरीखी मानते हैं । इसलिये उनका कहना है कि___“कोई कोई कहते हैं कि ' जैसी विभूतियाँ तीर्थंकरमें पाई जाती हैं वैसी मायावियोंमें नहीं पाई जाती' परन्तु यह बात ठीक नहीं है । क्योंकि किस प्रमाणसे यह बात सिद्ध की जायगी कि मायावियोंमें वे विभूतियाँ नहीं पाई जाती ? प्रत्यक्ष और अनुमानसे तो हम इस बातको साबित कर नहीं सकते । रहा आगम, सो आगमकी सत्यतामें प्रमाण क्या है ? अगर प्रमाणसे आगमकी सचाई सिद्ध की जाय, उससे विभूतियाँ सिद्ध की जायँ और विभूतियोंसे भगवान्का महत्त्व सिद्ध किया जाय तो इस परम्परा-परिश्रमसे क्या फायदा है ? इससे अच्छा तो यही है कि आगम और विभूतियोंको सिद्ध करनेके झंझटसे बचकर भगवान्के महत्त्वको ही सिद्ध किया जाय।" __इस वर्णनसे देवागम आदि शब्दोंका वास्तविक अर्थ, और इन
१--यथोदितविभूतयस्तीर्थकरे भगवति त्वयि, तादृश्यो मायाविष्वपि न इत्यतस्त्वं महानस्माकम् असि इति व्याख्यानादन्थविरोधाभावात् इति कश्चित्, सोऽपि कुतः प्रमाणात्प्रकृतहेतुं विपक्षासम्भविनं प्रतीयात् ? न तावत्प्रत्यक्षादनुमानाद्वा तस्य तदविषयत्वात् । नाप्यसिद्धप्रामाण्यादागमात्तत्प्रतिपत्तिः अतिप्रसंगात् । प्रमाणतः सिद्धप्रामाण्यादागमात्तत्प्रतिपत्तौ ततः प्रतिपत्तिरेवास्तु परम्परापरिश्रमपरिहारश्चैवं प्रतिपत्तुः स्यात् ।
-अष्टसहस्त्री।