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जैनधर्म-मीमांसा
इसके अतिरिक्त उनके वैदिक जीवनके चिह्न उनके जैन - जीवनमें भी मिलने चाहिये थे ।
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उत्तर — ऋषभदेवके जीवनमें ऐसी कौन-सी बात है जो वैदिक साहित्य के तथा अन्य जैनेतर सम्प्रदायोंके पात्रमें न मिलती हो ? नग्नता तो आजीवक पूर्णकाश्यप आदि श्रमणोंके अतिरिक्त शुकदेव वगैरह वैदिक पात्रोंमें भी मिलती है । अवधूत परमहंस आदि जैनेतर सम्प्रदाय भी पुराने हैं । वैदिक जीवनके चिह्न जैन जीवनI में न मिलें यह स्वाभाविक है । जब जैनियोंने ऋषभदेवको अपनाया तब उनपर जैनत्वका रंग चढ़ाना ही चाहिये था । उनकी अवधूतताको जैनत्वका रंग देना कठिन नहीं था । राम-कृष्ण आदि गृहस्थ महापुरुषोंको अपनाकर जब जैनत्वका रंग दिया जा सका तत्र ऋषभदेवको जैनत्वका रंग देना क्या कठिन था ? फिर भी एक
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बात ऐसी है जिससे मालूम होता है कि ऋषभदेव जैन नहीं थे । जैनशास्त्रोंमें वर्णन है कि उनके सिरपर जेटाएँ हो गईं थीं । जैन मुनियोंके सिरपर जटाएँ होना यह जैन-संस्कृति तथा आचार - शास्त्रकी आज्ञाके बिलकुल विरुद्ध है । जैन - शास्त्रोंमें जटा रखनेकी निन्दा है । कहा जा सकता है कि बहुत दिन तक ध्यानस्थ रहने से जटा बढ़ गईं थीं । परन्तु यह तो बाहरसे व्यक्तिको पहचाननेकी कला है । इस प्रकार कोई न कोई बहाना तो बनाना ही पड़ता । परन्तु इससे एक मूल- गुणका भंग होता है। जैनशास्त्रोंके अनुसार कमसे कम दो
१ वातोद्धूता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्त्तयः । धूमाल्य इव सद्धयानबह्रिदग्धस्य कर्मणः || - पद्मपुराण ३- २८८