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७८ nirn.in
जैनधर्म-मीमांसा
मिल जाय कि अमुक मनुष्यने अमुकको ' नमस्ते' कहकर अभिवादन किया तो ' नमस्ते ' द्वारा शिष्टाचार करनेवाले आर्य-समाजको हम उतना प्राचीन न मान लेंगे। ___ इस विषयमें कुछ लोगोंने कुछ प्रमाण देनेकी चेष्टा की है। उनकी संक्षिप्त आलोचना कर लेना उचित है । __ एक प्रमाण है म० ऋषमदेवका अस्तित्व । इसके विषयमें जो बातें कहीं जाती हैं उनका उत्तरसहित उल्लेख किया जाता है
प्रश्न-१-मार्कण्डेयपुराण, कूर्मपुराण, अग्निपुराण, वायुमहापुराण, ब्रह्माण्डपुराण, वाराहपुराण, लिंगपुराण, विष्णुपुराण, स्कन्दपुराणमें ऋषभदेवका वर्णन पाया जाता है। यद्यपि ये पुराण दो हजार वर्षसे पुराने नहीं हैं, फिर भी इनका आधार अति प्राचीन है। यदि कहा जाय कि इनका आधार वैदिक साहित्य है, तो कोई अत्युक्ति नहीं है । पुराणोंमें ऐसी अनेक कथाएँ मिलती हैं जो वेदों और ब्राह्मणोंमें पहलेसे ही मौजूद हैं। पुराण शब्दका उल्लेख भी वेदोंमें है।
उत्तर-इन पुराणोंका रचना-काल दो हजार वर्षसे भी बहुत कम है। कोई कोई तो १२०० वर्षसे पुराने नहीं हैं । इस लिये इनमें ऋषभदेवका उल्लेख मिले इसका कुछ भी मूल्य नहीं है। इनका आधार प्राचीन है, वेदोंकी कथाएँ भी इनमें मिलती हैं, परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि इनमें अपनी तरफसे कुछ लिखा नहीं है । इन पुराणोंमें ईसाकी चौथी शताब्दी तकके राजाओंके नाम मिलते हैं, जैनियों और बौद्धोंकी ( कमसे कम बौद्ध-धर्म वैदिक-युगका नहीं है ) निन्दा मिलती है । जब ये परिवर्तित और परिवर्द्धित नवीन