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प्राचीनताकी मालोचना
winner मासमें और अधिकसे अधिक चार मासमें केश-लोच करना ही चाहिये। यहाँ इस नियमका भंग करना पड़ा है और यह सब बाहरकी चीज़को पहचाननेके लिये है। __भागवतके उल्लेखसे भी यह सिद्ध नहीं होता कि ऋषभदेव जैन थे। उससे यही मालूम होता है कि ऋषभदेव एक अवधूत योगी थे। उन्होंने ' परमहंस धर्म का प्रचार किया था। वे पागलकी तरह नग्न रहते थे। उनकी लम्बी लम्बी और कुटिल अँटाएँ थीं। वे एक ही जगह पड़े पड़े खाते, पीते, टट्टी-पेशाब आदि कर लेते थे और उनका शरीर मलसे लिप्त हो गया था। दक्षिण कर्नाटकमें जाकर उन्होंने अग्नि-प्रवेश करके प्राण त्याग दिये। __ ऋषभदेवके इस चरित्रका भागवतमें भूतकालकी कथाके रूपमें वर्णन हुआ है । इसके आगे कहा गया है कि१-बिय-तिय चउक्कमासे लोचो उक्कस्स-मज्झिम-जहण्णो ।
सपडिक्कमणे दिवसे उववासेणेव कायन्वो। मूलाचार १-२९ २--जडान्धमूकवधिरपिशाचोन्मादकवदवधूतवेषोऽभिभाष्यमाणोऽपि जनानां
गृहीतमौनव्रतस्तूष्णीं बभूव । भाग० ५-५-२९ । ३-भक्तिशानवैराग्यलक्षणं पारमहंस्यधर्ममुपशिक्षमाणः। भा० ५-५-२८ । ४-परागावलम्बमानकुटिल-जटिल-कपिश-केशभूरिभारोऽवधूतमलिननिजश
रीरेण ग्रहगृहीत इवादृश्यत । भा० ५-५-३१ । ५--व्रतमाजगरमास्थितः शयान एवाभाति पिबति खादत्येव मेहति हदति स्म
चेष्टमानः उच्चरितादिग्धोद्देशः ।भा ५-५-३२ । एवं गोमृगकाकचर्यया व्रजस्तिष्ठनासीनः शयानः काकमृगगोचरितः पिबति खादत्यव
मेहति स्म । भा० ५-५-३४ . ६-अथ समरिवेगविधूतवेणुविकर्षणजातोपदावानलः तद्वनमालेलिहानः सह
तेन ददाह । भा० ५-६-८ ।