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जैनधर्म-मीमांसा
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वहाँका राजा अर्हत् ऋषभदेवकी शिक्षाएँ लेकर अपनी बुद्धिसे पाखंडका प्रचार करेगा। ___ ऋषभदेवका जैसा चरित्र-चित्रण भागवतकारने किया है वह जैन मुनिसे बहुत कम मिलता है। चूंकि भागवतके समयमें दक्षिणमें जैनधर्मका काफी प्रचार था और ऋषभदेव जैन-तीर्थंकरके रूपमें माने जाते थे इसलिये जैनधर्मकी निंदा करनेके लिये भागवतकारने अर्हत् राजाकी कल्पना करके जैनधर्मको ऋषभदेवके विचारोंका भ्रष्टरूप कह दिया । भारतीय साम्प्रदायिक साहित्यको देखनेसे मालूम होता है कि हर-एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदायकी निन्दा करनेके लिये दूसरे सम्प्रदायोंकी उत्पत्तिका कल्पित इतिहास रच डालता है । इस काममें दूसरे धर्मोके पात्रोंके नामोंका उपयोग किया जाता है जिससे वह कल्पना सत्यके समान मालूम होने लगे । जैन-साहित्यमें इसी प्रकार शिव, कपिल, वशिष्ठ आदिका चित्रण किया गया है। इसी प्रकार दूसरोंने जैनियोंके लिये किया है । ऋषभदेव अवश्य ही जैन नहीं थे परन्तु जब जैनियोंने उन्हें अपना लिया था तब उनकी उपपत्ति बिठलानेके लिये भागवतकारको वह कथा गढ़नी पड़ी। इस प्रकार भागवत तथा अन्य पुराणोंमें ऋषभदेवका उल्लेख जैनधर्मकी प्राचीनता सिद्ध नहीं करता।
प्रश्न ३-खंडगिरिके हाथीगुफावाले शिलालेखसे मालूम होता १-यस्य किलानुचरितमुपाकर्ण्य कोङ्कवेङ्ककुटकानां राजाऽहन्नामोपशिक्ष्य
कलावधर्मे उत्कृष्यमाणे भवितव्येन विमोहितः स्वधर्मपथमकुतोभयमपहाय कुपथपाखण्डमसमञ्जसं निजमनीषया मन्दः सम्प्रवर्तयिष्यते ।
भा० ५-६-९।