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प्राचीनताकी आलोचना
प्रश्न ५-मथुराके कङ्काली टीलेपर भ० ऋषभदेवकी मूर्तियाँ मिली हैं, जिनका समय ईस्वीसन् १५० है।
उत्तर-जब कलिंग-जिनसे ऋषभ-जिनेन्द्रकी प्राचीनता सिद्ध नहीं होती जिसे भ० महावीरके साठ वर्ष पछिका कहा गया है तब इन सैकड़ों वर्ष पीछेकी मूर्तियोंसे क्या सिद्ध होगा?
प्रश्न ६-मोहन-जो-दड़ोकी खुदाईमें अनेक मोहरें मिली हैं। इनमें प्लेट नं २ की सील नं० ३, ४, ५ पर ध्यानावस्थाकी खड्गासन मूर्तियाँ हैं । इनके नीचे बैलका चिह्न है । खड्गासनका वर्णन तो खास तौरसे जैन-शास्त्रोंमें ही मिलता है । यह मूर्ति कुशानकालीन मथुरावाली मूर्तिसे मिलती है। इसका समय पाँच हजार वर्ष पुराना है।
उत्तर-खड्गासन जैनियोंका असाधारण चिह्न नहीं है परन्तु पुराने समयमें अनेक ऐसे जैनेतर सम्प्रदाय थे जिनमें साधु-महात्मा खड़े रहकर तपस्या किया करते थे । खड़ी हुई मूर्तियाँ भी अनेक सम्प्रदायोंकी मिलती हैं । शिवकी खड़ी हुई मूर्तियाँ तो एकसे एक सुन्दर पाई जाती हैं। इसलिये खड्गासनके आधारपर उसे जैन मूर्ति कदापि नहीं कहा जा सकता । परेल ( बम्बई ) में जो शिवकी मूर्ति है वह बिलकुल खड्गासन है और उसका चेहरा भी जैनमूर्तियोंका सा है। मोहन-जो-दड़ोकी खुदाईमें धार्मिक इतिहासपर प्रभाव डालनेवाला ऐसा मसाला नहीं मिला है जिससे वर्तमानके सम्प्रदाय कुछ ठीक निर्णय कर सकें । हाँ, सिर्फ शिवकी प्राचीनता सिद्ध हुई है और यह निर्विवाद सिद्ध हुआ है कि वर्तमान देवताओंमें शिव सबसे प्राचीन है। शिवकी प्राचीनता कलकालिथिक (Chalcalithic)