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जैनधर्म-मीमांसा
Mananana
भी सम्भव है कि पार्थापत्योंके समयमें ब्रह्मचर्य स्वतंत्र व्रत न होनेके कारण इस विषयका शैथिल्य बढ़ गया हो और इस कमज़ोरीने उनके सांसारिक बन्धनोंको बढ़ा दिया हो । जो कुछ हो परन्तु इस विषयमें भी महावीर स्वामीने कुछ सुधार किया था यह बात सिद्ध होती है । ___ पाँचवें प्रश्नका रहस्य और भी अधिक, अस्पष्ट है । पार्श्वनाथने संयमका फल आत्म-शुद्धि ही बतलाया होगा। परन्तु सम्भव है पार्खापत्य लोग संयमका फल ऐहिक सुख स्वर्ग समझते हों और इसलिये तृष्णाके कारण उनके मनमें अनेक बुरे विचार पैदा होते रहते हों।
छठे प्रश्नसे मालूम होता है कि म० महावीरका शास्त्र ( श्रुत ) अधिक असरकारक, विस्तृत और निःसंदिग्ध था । उनने ब्रह्मचर्यपर बहुत जोर दिया था और तपोंका वर्णनात्मक और आचरणात्मक विस्तार किया था। ___सातवें प्रश्नमें मूलका रूप बहुत विकृत हो गया मालूम होता है । इस प्रश्नमें मन-सम्बन्धी मतभेदका निराकरण होना चाहिये । मनके विषयमें तो आज भी बहुत मत-भेद है । दिगम्बर-परम्पराके अनुसार मनका स्थान हृदय है और मन कमलके आकारका है। श्वेताम्बर-परम्पराके अनुसार मनका स्थान सर्वाङ्ग है, इसलिये वह शरीराकार है । सम्भव है इनमेंसे कोई एक मत या दिगम्बर मत पार्श्वनाथके समयका हो अथवा असंज्ञियोंके भाव मन होता है इस बातमें कुछ मत-भेद हो । अथवा म० पार्श्वनाथने मनोनिग्रहके ठीक ठीक उपाय न बताये हों और म० महावीरने बताये हों, इसलिए यह प्रश्न किया गया हो।
आठवें प्रश्नसे मालूम होता है कि म० पार्श्वनाथने दूसरे मतोंका