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जैनधर्म- मीमासा
ग्यारहवें प्रश्नसे मालूम होता है कि केशिकुमार हर तरह निराश हो गये थे। निराशाके तीन कारण मालूम होते हैं:
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( क ) धर्मशास्त्रकी अनेक बातें अनिश्चित और अस्पष्ट थीं । (ख) प्रतिवादियों का सामना करनेमें वे अशक्त थे । ( ग ) शिथिलाचार बहुत बढ़ गया था जो कि केशिकुमारको खटकता तो था परन्तु उनका कुछ वश न चलता था ।
गौतमने म० महावीरका परिचय देकर इन सब आपत्तियोंके दूर होने की बात कहकर दिलासा दी ।
बारहवें प्रश्नसे मालूम होता है कि म० पार्श्वनाथके समयमें मोक्षका स्थान अनिश्चित था | मुक्त जीव लोकाग्रमें स्थित हैं यह बात महात्मा महावीरने कही होगी । मुक्त जीवोंके निवासके विषय में तब बड़ा भारी मत भेद था । वे कहाँ स्थित हैं, इस विषयका विवाद तो था ही परन्तु वे स्थित हैं कि नहीं यह भी एक प्रश्न था । एक सम्प्रदाय तो मुक्त जीवोंको अनन्तकाल तक अनन्त आकाशमें दौड़ता हुआ ( गतिमान ) ही मानता है । सम्भव है महात्मा पार्श्वनाथके समयमें यह प्रश्न अधूरा या अछूता ही रह गया हो जिसका म० महावीरने पूर्ण निश्चय किया हो ।
अपनी बुद्धिके अनुसार मैंने इन प्रश्नोंकी उपपत्ति बिठलानेकी कोशिश की है । सम्भव है दूसरे ढङ्गसे इनकी उपपत्ति बैठ सके । परन्तु यह बात तो निश्चित है कि ये प्रश्न साधारण नहीं हैं किन्तु पार्श्वनाथ और महावीरके तीर्थका अन्तर दिखलानेवाले हैं ।
इस वर्णन में एक बात और आती है । उत्तराध्ययनमें केशिकुमारको श्रुतज्ञानी कहा है जब कि गौतमको द्वादशाङ्गवेत्ता ( बारसंगविऊ )