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धर्म-मीमांसाका उपाय
सार यह है कि धर्म सुखके लिये है । जो सुख बाह्य साधनोंपर ही अवलम्बित है, वह पूर्ण सुख नहीं है । स्वार्थपूर्ण दृष्टि बनानेसे वह मिल नहीं सकता । अपने हिस्सेका बाह्य सुख-भोगका हमें अधिकार है । पूर्ण सुखी बननेके लिये सुखी बननेकी कला जानना चाहिए । गुणभासोंसे बचना चाहिए ।
धर्म-मीमांसाका उपाय धर्मका उद्देश्य और उसकी विविधताका रहस्य समझ लेनेके बाद धर्मकी मीमांसाका कार्य बहुत सरल हो जाता है । धर्म सुखका कारण होनेपर भी दुःखका कारण क्यों हो जाता है, कलह-बर्द्धक क्यों हो जाता है, आदि बातोंको समझनेकी कुंजी हाथमें आ जाती है। जगत्कल्याणकी जो कसौटी बताई गई है, उसको ध्यानमें न रखनेसे, धर्मके नामपर अहंकारकी पूजा करनेसे, कल्याणकारी धर्म अकल्याणकारी बन जाता है । इसलिए धर्मसे लाभ उठानेके लिए हमें निम्नलिखित उपायोंकी योजना करना चाहिये
१-हम सर्व-धर्म-समभावी बनें । अगर हमारा किसी धर्म-संस्थासे ज्यादा संपर्क है, तो हम भले ही उस संस्थाका अधिक उपयोग करें
और आत्मीयता प्रकट करें; परन्तु दूसरी धर्म-संस्थाओंको अपनी धर्म-संस्थाके समान पवित्र माने । उनसे लाभ उठानेका मौका मिलनेपर उनसे लाभ भी उठावें । ये सभी धर्म-संस्थाएँ मनुष्यसमाजको उन्नत बनानेके लिए थीं। उनकी रीति-नीतिमें अगर अन्तर मालूम होता है, तो उस अन्तरसे उन्हें भला-बुरा न समझें; किन्तु उसको देश-कालका असर समझें । करीब सवा हजार वर्ष पहिले अरबके लोगोंकी उन्नति के लिए इस्लामने जो नियम बनाये,