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धर्म-मामासाका उपाय
किसी देशमें जाकर वे
शर्तपर बस जायँ कि
करोड़ों मनुष्य दूसरे देशपर शासक बनकर मौज करना चाहते हैं । दूसरे जातिके अच्छेसे अच्छे सदाचारी त्यागी गुणी विश्वसनीय व्यक्तिसे उतनी आत्मीयता प्रकट नहीं करना चाहते जितनी कि अपने वर्गके पतितसे पतित व्यक्तिके साथ करना चाहते हैं । इस राष्ट्रीय जाति-भेदसे आज दुनियाकी राजनीति - अर्थनीति भयंकर तांडव कर रही है और उससे मनुष्य जाति त्राहि त्राहि पुकार रही है । जरूरत इस बातकी है कि मनुष्य जाति एक ही मान ली जाय जैसी कि वह है । शासनकी सुविधाके लिये राष्ट्रीय भेद रहें, परन्तु एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रपर पशु - बलसे तथा और किस ढंगसे आक्रमण न करे । अगर मनुष्य- संख्या ज्याद: है, तो कम संख्यावाले देशमें अपनेको हर तरह उसी अपना लेंगे। उन देशोंपर आक्रमण करके, उन्हें दलित करके अपने वर्गका पोषण करना मनुष्यताका नाश करना है । इससे संसारमें शान्ति नहीं हो सकती । इस नीति से कोई चैनसे नहीं बैठ सकेगा और बारी बारीसे सबको पिसना पड़ेगा । इसके अतिरिक्त एक राष्ट्रके भीतर भी अनेक तरहके वर्ग बने हुए हैं । जैसे भारतवर्ष में हिन्दू-मुसलमानोंमें जाति-भेद और सम्प्रदाय - भेदसे घोर संग्राम छिड़ा रहता है। इसके अतिरिक्त हिन्दू समाजमें ही करीब चार हजार जातियाँ हैं, जिनमें परस्पर रोटी-बेटी व्यवहार नहीं, इससे पारस्परिक सहयोगका लाभ नहीं मिल पाता है । पड़ोसमें रहते हुए भी न रहनेके बराबर कष्ट उठाना पड़ता है । ये वर्ग-भेद भी ईर्ष्या और दुरभिमानके बढ़ानेवाले हैं । इन सब
इस देशका बना लेंगे,
वहाँकी भाषा आदिको
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