________________ सन्दर्भ मालवणिया, दलसुख (पं.) जैन साहित्य का बहद् इतिहास, भाग-1, प्रस्तावना पृ.-13 महाप्रज्ञ, आचार्य : महावीर का अर्थशास्त्र - पृ.-25 कन्हैया लाल 'कमल', उपाध्याय मुनि : जैनागम निर्देशिका पृ.-१ जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से 1961 में प्रकाशित पृष्ठ-36 जैन, हीरालाल (डॉ.), भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ.-55 6. कन्हैया लाल 'कमल', उपाध्याय मुनि : जैनागम निर्देशिका प. 9-10 एवं मुनि पुण्यविजय सम्पादित नन्दीचूर्णि पृ. 8-9 7. जैन, सागरमल (प्रो.) का लेख 'आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान, महत्व, रचनाकाल एवं रचयिता' प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा, प्रकाशक-आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान पृ.-1 जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) 'प्राकृत साहित्य का इतिहास' प. 33-34 एवं . आगम साहित्य मनन और मीमांसा' पृ.-7 9. आचारांग चूर्णि 5/185 (ब्राह्मणों के प्राचीन ग्रन्थ भी वेद कहे जाते हैं) 10. समवायांग प्रकीर्णक समवाय सूत्र 88, नन्दीसूत्र 40 (बौद्धों के प्राचीन शास्त्र को भी त्रिपिटक कहा जाता है) 11. आचारांग नियुक्ति, गाथा-16 12. 1. से णं अंगठ्ठयाए पढमे-समवायांग प्रकीर्णक समवाय सूत्र-89 2. स्थापनामधिकृत्य प्रथमंगम्-नन्दी मलयगिरीवत्ति पत्र 211 व 240 13. मुनि कन्हैयालाल 'कमल', उपाध्याय, जैनागम निर्देशिका - पृ. 1 14. मुनि कन्हैयालाल 'कमल', उपाध्याय, जैनागम निर्देशिका - पृ. 63 15. मुनि कन्हैयालाल 'कमल', उपाध्याय, जैनागम निर्देशिका - पृ. 97 16. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ.-62 (10)